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________________ ५६४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण रुय्यक ने मालादीपक को सर्वथा स्वतन्त्र अस्तित्व देकर उसमें एक पद से अन्वय के चमत्कार की अपेक्षा माला का चमत्कार प्रधान माना। इसीलिए माला या शृङ्खला के सौन्दर्य पर आधृत एकावली, कारणमाला आदि के विवेचन-क्रम में उन्होंने मालादीपक का निरूपण किया। एकावली में पूर्व-पूर्व के प्रति उत्तर-उत्तर का उत्कर्ष-हेतु होना माला के रूप में दिखाकर रुय्यक ने उसके विपरीत उत्तर-उत्तर के प्रति पूर्व-पूर्व का गुणाधायक होना और इस प्रकार उसकी माला की कल्पना मालादीपक का स्वरूप माना।' स्पष्ट है कि रुय्यक ने मालादीपक की परिभाषा पूर्ववर्ती आचार्यों के मतानुसार ही दी है। अप्पय्यदीक्षित ने मालादीक का स्वतन्त्र रूप से विवेचन करते हुए उसके लक्षण में दीपक और एकावली का योग माना है ।२ एक पद से अनेक वाक्य का अन्वय होने के कारण इसमें दीपक का तथा 'गृहीतमुक्तरीति' अर्थात् पूर्व-पूर्व का उत्तर-उत्तर के प्रति और उत्तर-उत्तर का पूर्व-पूर्व के प्रति विशेषणभाव के कारण एकावली का योग रहता है । अप्पय्य ने जिस प्रकार मम्मट, रुय्यक आदि की एकावली के स्वरूप को विस्तार दिया था, उसी प्रकार मालादीपक का क्षेत्र भी उन्होंने विस्तृत किया। मम्मट, रुय्यक आदि केवल उत्तर-उत्तर के प्रति पूर्व-पूर्व का विशेषणभाव या गुणाधायक होना मालादीपक में अपेक्षित मानते थे; पर अप्पय्य दीक्षित गृहीतमुक्तरीति से इस रूप के साथ पर्व-पूर्व के प्रति उत्तर-उत्तर का विशेषणभाव भी मालादीपक का दूसरा रूप मानते हैं। इन दोनों प्रकार के विशेषणभाव की माला में एक पद से अनेक वाक्य का अन्वय होने पर मालादीपक का रूप-विधान होता है। पण्डितराज जगन्नाथ ने मालादीपक को स्वतन्त्र अलङ्कार नहीं मानकर एकावली का एक भेद माना है। इसमें रुय्यक की तरह जगन्नाथ को भी १. पूर्वपूर्वस्योत्तरोत्तरगुणावहत्वे मालादीपकम् । -रुप्यक, अलङ्कारसूत्र, ५५ २. दीपककावलीयोगान्मालादीपकमिष्यते । -अप्पय्यदीक्षित, कुवलयानन्द, १०७ ३. अस्मिंश्चकावल्या द्वितीये भेदे पूर्व-पूर्वः परस्परस्योपकारः क्रियमाणो यद्य करूपः स्यात्तदाऽयमेव मालादीपकशब्देन व्यवह्रियते प्राचीनः । -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७३६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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