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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ५६३ एक क्रिया आदि से अनेक का अन्वय इसमें भी दीपक की तरह ही अपेक्षित माना गया है: पर इसमें एकावली की तरह उत्तर-उत्तर का पूर्व-पूर्व से गुणोत्कर्ष पाने की धारणा भी व्यक्त की गयी है। यही कारण है कि कुछ आचार्यों ने इसकी स्वतन्त्र परिभाषा नहीं देकर इसे दीपक और एकावली का योग-मात्र कहा है। दो अलङ्कारों के योग से नवीन अलङ्कार की कल्पना होने लगे तो अलङ्कार की संख्या अनन्त हो जाय । इसलिए कुछ आचार्य इसे स्वतन्त्र अलङ्कार नहीं मानकर दीपक में ही इसका अन्तर्भाव मानते हैं। यही उचित भी है। यहाँ मालादीपक के स्वरूप तथा उसे स्वतन्त्र अलङ्कार मानने के सम्बन्ध में आचार्यों की धारणा का ऐतिहासिक अध्ययन वाञ्छनीय है। आचार्य दण्डी ने मालादीपक को दीपक का एक भेद मानकर पूर्व-पूर्व वाक्य की अपेक्षा रखने वाले उत्तर-उत्तर वाक्य की माला की कल्पना की। इसमें सभी वाक्यों का एक पद से अन्वय होता है। अतः, मूलतः यह दीपक ही है।' पूर्व-पूर्व की अपेक्षा रखने वाले उत्तर-उत्तर वाक्य की माला की कल्पना के कारण इसे मालादीपक कहते हैं। भोज ने भी दण्डी की तरह मालादीपक को दीपक का ही भेद माना है। मम्मट ने दीपक से पृथक् मालादीपक की परिभाषा दी। उन्होंने मालादीपक को दीपक-सापेक्ष मानकर ही दीपक की परिभाषा के ठीक बाद उसे परिभाषित किया। उनके अनुसार जहां पूर्व-पूर्व वस्तु उत्तर-उत्तर वस्तु का उपकार करे अर्थात् उसका उत्कर्ष-साधन करे, वहाँ मालादीपक अलङ्कार होता है। ध्यातव्य है कि मम्मट स्वयं भी इसे अपने-आप में पूर्ण परिभाषा नहीं मानते थे। उन्होंने मालादीपक का जो उदाहरण दिया है, उसमें वाक्यों की माला में एक क्रिया का सर्वत्र सम्बन्ध दिखाया गया है। यह मालादीपक को दीपक का ही एक रूप प्रमाणित करता है। दीपक-निरूपण के सन्दर्भ में मालादीपक का विवेचन भी यही सिद्ध करता है कि मम्मट के समय तक दीपकधारणा से मालादीपक की धारणा अलग नहीं हुई थी। १. इत्यादि दीपकत्वेऽपि पूर्वपूर्वव्यपेक्षिणी। वाक्यमाला प्रयुक्त ति तन्मालादीपकं मतम् ।। -दण्डी, काव्यादर्श २, १०८ २. द्रष्टव्य-सरस्वतीकण्ठाभरण पृ० ४५२ ३, मालादीपकमा चेद्यथोसरगुणावहम् । -मम्मट, काव्यप्र० १०,१५७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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