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५४८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण है। वस्तु सुखद अथवा दुःखद प्रकृति की हो सकती है। भोज ने पर्यायः अभिधान से पर्यायोक्ति अलङ्कार का स्वरूप-निरूपण किया है। ___ आचार्य मम्मट ने पर्यायोक्ति तथा पर्याय का परस्पर स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार कर, दोनों का अलग-अलग विवेचन किया है। उन्होंने पर्याय के स्वरूप का निरूपण रुद्रट के पर्याय के द्वितीय प्रकार के आधार पर किया है। उनके अनुसार एक वस्तु का क्रम से अनेक आधारों में होना या किया जाना पर्याय है । अनेक वस्तुओं का भी क्रम से एक आधार में होना या किया जाना पर्याय का दूसरा प्रकार है। यह धारणा रुद्रट की पर्याय-धारणा से अभिन्न है। यही धारणा रुय्यक ने भी 'अलङ्कारसूत्र' में व्यक्त की है। ___ मम्मट तथा रुय्यक के उत्तरवर्ती विश्वनाथ, अप्पय्य दीक्षित, जगन्नाथ आदि आचार्यों ने उनकी मान्यता के अनुरूप ही पर्याय अलङ्कार को पर्यायोक्ति से स्वतन्त्र मान कर परिभाषित किया है। उनके पर्याय-लक्षण रुद्रट के पर्याय-लक्षण से अभिन्न हैं। रुद्रट ने पर्याय के जिस द्वितीय रूप की उद्भावना की थी उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। इतना अवश्य हुआ कि रुद्रट ने जहां पूर्ववर्ती आचार्यों की पर्यायोक्ति के एक अङ्ग के रूप में पर्याय के इस स्वरूप की कल्पना की थी वहाँ उत्तरवर्ती आचार्यों ने पर्याय को पर्यायोक्ति से स्वतन्त्र अस्तित्व दे दिया। रुद्रट ने पर्यायोक्ति या पर्यायोक्त के ही संक्षिप्त-रूप पर्याय व्यपदेश का प्रयोग किया था । उनकी दृष्टि में पर्यायोक्त और पर्याय अभिन्न थे, पर पीछे चलकर वे अलग-अलग अलङ्कार के अभिधान बने । पर्यायोक्ति की जगह पर्याय शब्द का प्रयोग कर रुद्रट ने अनजाने ही अलङ्कार-शास्त्र को अलङ्कार की एक नवीन संज्ञा दे दी और पर्याय के एक नवीन प्रकार की कल्पना कर उन्होंने एक स्वतन्त्र अलङ्कार की सृष्टि कर दी। कारणमाला
कारणमाला कारणों की शृङ्खला की धारणा पर आधृत अलङ्कार है। १. यत्र कमनेकस्मिन्नेकमेकत्र वा क्रमेण स्यात् ।
वस्तु सुखादिप्रकृति क्रियेत वान्यः स पर्यायः ॥-रुद्रट, काव्यालं०७,४४ २. द्रष्टव्य, भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण ४, ८० ३. एक वस्तु क्रमेणानेकस्मिन्भवति क्रियते वा स पर्यायः ।...... . अनेकमेकस्मिन् क्रमेण भवति क्रियते वा सोऽन्यः ।
-मम्मट, काव्यप्र० वृत्ति पृ० २७३-७४ . .४. द्रष्टव्य, रुय्यक, अलं० सर्वस्व सूत्र स ६०