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________________ ५३८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण भी वस्तुस्वरूप का स्फुट वर्णन होता है । जहाँ ऐसे वर्णन कविप्रतिभा से किये जाते हैं, वहाँ स्वभावोक्ति अलङ्कार की सत्ता मानी जाती है । निष्कर्षतः, विभिन्न अवस्थाओं में वस्तुस्वभाव का विच्छित्तिपूर्ण वर्णन स्वभावोक्ति का लक्षण है । उद्भट ने स्वभावोक्ति के यौगिक अर्थ - मात्र के आधार पर उसकी परिभाषा नहीं दी और न उन्होंने पूर्वाचार्यों के मत का अविचारित अनुमोदन ही किया । उनके मतानुसार क्रिया में संलग्न मृगशावक आदि के हेवाक ( इच्छा आदि मानसिक चेष्टा ) का वर्णन स्वभावोक्ति अलङ्कार है ।' उद्भट के स्वभावोक्ति-लक्षण में अनुगमन नहीं, प्रस्थान है । पूर्ववर्ती आचार्यों के लक्षण से उद्भट के लक्षण में स्वभावोक्ति के सम्बन्ध में कई बातें नवीन हैं— एक तो यह कि उद्भट क्रिया प्रवृत्त अर्थात् साध्यावस्था में रहने वाले पदार्थ का वर्णन ही इसमें अपेक्षित मानते हैं, कि पूर्ववर्ती आचार्य वस्तु के सिद्ध और साध्य का विवेक स्वभावोक्ति में नहीं करते थे । दूसरी बात यह कि क्रिया में संलग्न पदार्थ की केवल शारीरिक चेष्टाओं का यथारूप या स्फुट वर्णन ही उद्भट के अनुसार स्वभावोक्ति के रूप-विधान के लिए पर्याप्त नहीं है, उसमें उस वर्ण्य की इच्छा, उत्कण्ठा आदि मानसिक क्रिया का वर्णन भी अपेक्षित है और इसी से सम्बद्ध तीसरी बात यह कि जहाँ पूर्ववर्ती आचार्य निर्जीव पदार्थों के स्वरूप के स्फुट वर्णन में भी स्वभावोक्ति का सद्भाव मानते थे, वहाँ उद्भट केवल सजीव पदार्थों के वर्णन में ही स्वभावोक्ति मानेंगे, क्योंकि सजीव के ही हेवाक का वर्णन सम्भव है । इस प्रकार स्वभावोक्ति का वस्तु-स्वरूप या बस्तु-स्वभाव के स्फुट वर्णन मात्र से विशिष्ट लक्षण उद्भट ने दिया है । वामन ने वस्तु स्वभाव के स्फुट वर्णन को काव्य के अर्थव्यक्ति नामक गुण से अभिन्न मानकर अलङ्कार रूप में उसका पृथक् विवेचन आवश्यक: नहीं समझा । रुद्रट ने जाति या स्वभावोक्ति के सम्बन्ध में उद्भट की मान्यता को छोड़ भामह और दण्डी के मत का अनुगमन किया है । उनके अनु-सार जिस वस्तु का संस्थान अर्थात् स्वाभाविक रूप, अवस्थान तथा व्यापार जैसा हो उसका वैसा ही वर्णन जाति है । उसमें बालक, मुग्ध युवती, कातर, १. क्रियायां संप्रवृत्तस्य वाकानां निबन्धनम् । कस्यचिन्मृगडिम्भादेः स्वभावोक्तिरुदाहृता ॥ -- उद्भट, काव्यालं० सार सं ० ३,८०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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