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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ५१९ 'अलङ्काररत्नाकार' में शोभाकर ने सामान्य रूप से 'एक वस्तु का भनेकधा कल्पन' उल्लेख का स्वरूप माना है।' वे विश्वनाथ के अनुयायी जान पड़ते हैं। जयदेव ने अनेक प्रमाताओं के द्वारा एक वस्तु के अनेकधा उल्लेख-मात्र को उल्लेख का लक्षण माना।२ अप्पय्य दीक्षित ने भी 'चित्रमीमांसा' में उल्लेख का यही लक्षण माना है; पर 'कुवलयानन्द' में उन्होंने इसके साथ उल्लेख के दूसरे रूप-एक प्रमाता के द्वारा एक वस्तु का विषय-भेद से अनेकधा उल्लेख-का भी उल्लेख किया है। दीक्षित के द्वारा किसी विषय में अपनी मान्यता के साथ उस विषय में पूर्व-प्रचलित अन्य मान्यताओं का उल्लेख किया जाना 'कुवलयानन्द' का वैशिष्ट्य है। सम्भव है, दीक्षित उल्लेख का एक ही रूप मानते हों। इतना स्पष्ट है कि उल्लेख के सम्बन्ध में उक्त दो प्रकार की मान्यताएं प्रचलित थीं। रुय्यक के उल्लेख-लक्षण में दोनों की सम्भावना थी। रुय्यक के उल्लेख-लक्षण-सूत्र का निमित्त-भेद से एक वस्तु का अनेक प्रमाताओं द्वारा अनेकधा ग्रहण तथा एक प्रमाता के द्वारा भी एक वस्तु का निमित्त-भेद से अनेकधा ग्रहण अर्थ निकाला जा सकता है। विद्याधर, विद्यानाथ, जगन्नाथ आदि आचार्यों ने उल्लेख में प्रमाता-भेद आवश्यक माना है। एक की अनेकधा कल्पना प्रमाता-भेद से भी सम्भव है और विषय-भेद से भी। विषय-भेद से एक वस्तु का भिन्न-भिन्न रूपों में उल्लेख भी उल्लेख अलङ्कार का एक रूप माना जाना चाहिए। भतः, उल्लेख के निम्नलिखित दो रूप स्वीकार्य हैं : (क) जहाँ अनेक प्रमाता रुचि आदि के भेद से एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण करते हों तथा (ख) जहां विषय-भेद से एक वस्तु का अनेक रूपों में उल्लेख हो। ___ रुय्यक आदि आचार्यों ने उल्लेख-परिभाषा में 'ग्रहण' शब्द का प्रयोग किया था। विद्याधर, विद्यानाथ, विश्वनाथ, जयदेव आदि ने 'ग्रहण' के स्थान पर 'उल्लेख' शब्द तथा शोभाकर आदि ने 'कल्पन' शब्द का प्रयोग किया। १. एकस्यानेकधा कल्पनमुल्लेखः । -शोभाकर, अलङ्कार रत्नाकर, सूत्र ३४ २. बहुभिर्बहुधोल्लेखादेकस्योल्लेखिता मता।-जयदेव, चन्द्रालोक, ५,२३ ३. द्रष्टव्य, अप्पय्य दी० चित्रमीमांसा, पृ० ६५ तथा कुवलयानन्द, २२-२३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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