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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
ने संशयात्मक मनःस्थिति के चारुतापूर्ण वर्णन में सन्देह अलङ्कार माना है । अधिकांश आचार्यों को उसके निश्चयगर्भ तथा निश्चयान्त भेद मान्य हैं । रुय्यक ने शुद्ध, निश्चयगर्भ तथा निश्चयान्त के साथ एक भिन्नाश्रय भेद भी माना है । साधारण धर्म के त्रिविध निर्देश के आधार पर भी सन्देह के तीन भेद माने जा सकते हैं ।
उल्लेख
रुय्यक के 'अलङ्कार-सूत्र' में उल्लेख अलङ्कार का प्रथम उल्लेख मिलता है । रुय्यक ने इसे परिभाषित करते हुए कहा था कि जहाँ एक वस्तु का निमित्त-भेद से अनेक रूप में ग्रहण होता है वहाँ उल्लेख अलङ्कार होता है । " अभिप्राय यह कि जहाँ कवि प्रमाता के द्वारा एक वस्तु का अनेक धर्मों के योग से, अनेक रूपों में ग्रहण किये जाने का वर्णन करता है, वहाँ उल्लेख अलङ्कार माना जाता है । इसमें एक वस्तु के बहुल रूपों का उल्लेख होता है । अतः, इसकी संज्ञा अन्वर्था है । रुचि भेद, तात्कालिक अपेक्षा के भेद, व्युत्पत्तिभेद आदि से एक वस्तु का अनेकधा उल्लेख सम्भव होता है । रुय्यक ने उल्लेख लक्षण में प्रमाता की अनेकता का उल्लेख नहीं किया था; पर 'अलङ्कारसर्वस्व' में उल्लेख का भ्रान्तिमान्, अभेद में भेद-रूप अतिशयोक्ति आदि से भेद - निरूपण के क्रम में यह कहा गया है कि उल्लेख में अनेक प्रमाता होते हैं, जो एक वस्तु को रुचि आदि के भेद से अनेक रूपों में ग्रहण किया करते हैं । एक वस्तु एक प्रमाता को उसकी रुचि आदि के अनुरूप एक रूप में गृहीत होती है; पर दूसरा प्रमाता उसी वस्तु को दूसरे रूप में ग्रहण करता है ।
विश्वनाथ ने 'साहित्यदर्पण' में उल्लेख के दो रूपों का सङ्केत दिया । उनके अनुसार एक वस्तु का अनेकधा उल्लेख कहीं प्रमाता के भेद से हो सकता है और कहीं विषय- भेद से । इस प्रकार विश्वनाथ के अनुसार एक वस्तु का अनेक प्रमाताओं के द्वारा अनेक रूपों में ग्रहण होने का वर्णन उल्लेख का एक रूप होगा और एक प्रमाता के द्वारा एक वस्तु का विषय-भेद से अनेक रूपों में ग्रहण होने का वर्णन उसका दूसरा रूप माना जायगा ।
१. एकस्यापि निमित्तवशादनेकधा ग्रहण उल्लेखः । —रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व सूत्र सं० १९
२. क्वचिद्भेदाद्ग्रहीतृणां विषयाणां तथा क्वचित् । एकस्यानेकधोल्लेखो यः स उल्लेख इष्यते ॥
— विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, ५३