SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण वस्तु का अनुभव करने से पूर्वानुभूत वस्तु का संस्कार जाग्रत हो जाता है । अनुभूत वस्तु के साथ सम्बन्ध रखने वाली अन्य वस्तुओं का संस्कार भी उस वस्तु के संस्कार के साथ सम्पृक्त रहता है। अतः, एक संस्कार जगकर सम्बद्ध संस्कारों को भी जगा देता है। किसी वस्तु का अनुभव मन में . संस्कार के रूप में निहित उसके सदृश अन्य वस्तु के संस्कार को जगा देता है। यही स्मृति स्मरण या स्मृति अलङ्कार का रूप-विधान करती है । भोज ने सादृश्यजन्य स्मृति के साथ चिन्ता, सम्बन्धिज्ञान आदि से समुत्था"पित स्मृति को भी स्मरण अलङ्कार का स्वरूप माना है। उनके अनुसार किसी भी आधार पर पूर्वानुभूत वस्तु की होने वाली स्मृति स्मरग अलङ्कार का विषय मानी जायगी। विश्वनाथ, शोभाकर, अप्पय्य दीक्षित आदि सभी प्रमुख आलङ्कारिकों ने सादृश्यमूलक स्मृति को स्मरणालङ्कार का विषय माना है। शोभाकर, अप्पय्य दीक्षित, जयरथ आदि आचार्यों ने. इसे स्मृति कहा है। रुय्यक, मम्मट आदि ने इसे स्मरण नाम से अभिहित किया है। वैधर्म्य भी स्मृति का हेतु होता है। राघवानन्द महापात्र ने वैधर्म्य से उत्पन्न स्मृति को भी सादृश्यसमुत्थित स्मृति के साथ स्मरण अलङ्कार माना था। उनके इस मत का उल्लेख साहित्यदर्पण में मिलता है ।२।। पण्डितराज जगन्नाथ की मान्यता है कि स्मरण सादृश्यजन्य स्मृति तो है ही; पर केवल सदृश के अनुभव से उसके सदृश पूर्वानुभूत वस्तु की स्मृति तक उसके क्षेत्र को सीमित नहीं किया जा सकता। सदृश वस्तु की स्मृति से उससे सम्बद्ध अन्य अनुभूत वस्तु की स्मृति भी स्मरण अलङ्कार का विषय मानी जायगी। अभिप्राय यह कि यदि कोई वस्तु सादृश्य सम्बन्ध से किसी वस्तु की स्मृति जगाती है और उस स्मृति से किसी प्रकार सम्बद्ध किसी अन्य वस्तु की स्मृति हो आने का वर्णन होता है तो वहाँ जगन्नाथ स्मरण १. सदृशादृष्टचिन्तादेरनुभूतार्थवेदनम् । स्मरणं प्रत्यभिज्ञान-स्वप्नावपि न तद्बहिः ।। -भोज, सरस्वतीकण्ठा० ३,४२ २. राघवानन्दमहापात्रास्तु वैसादृश्यात् स्मृतिमपि स्मरणालङ्कार मिच्छन्ति ।-विश्वनाथ, साहित्यद० पृ० ६१६ ३. सादृश्यज्ञानोबुद्धसंस्कारप्रयोज्यं स्मरणं स्मरणालङ्कारः। -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर पृ० ३४१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy