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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ५०६ किया है। प्रसिद्ध तथा विरुद्ध के आधार पर एवं विधि और निषेध के आधार पर भी आक्षेप के भेद कल्पित हैं। वस्तु-निषेध तथा वस्तु-कथन-निषेध नामक आक्षेप-भेदों की कल्पना नरेन्द्रप्रभ सूरि के द्वारा की गयी। स्मरण मम्मट-रुय्यक के पहले स्मरण या स्मृति को अलङ्कार के रूप में स्वीकृति नहीं मिली थी। स्मृति के स्वरूप तथा कारण पर दर्शन में बहुत पहले से विचार हो रहा था। दार्शनिकों ने ज्ञान के स्वरूप का निरूपण करते हुए स्मृतिजन्य ज्ञान, प्रत्यभिज्ञा आदि का विशद विवेचन किया था। रुय्यक और मम्मट के काल में स्मृति-धारणा की अवतारणा अलङ्कार-क्षेत्र में हुई। स्मरणालङ्कार में स्मृति का स्वरूप तो दर्शन की स्मृति से ही गृहीत हुआ; . किन्तु उसके सदृश वस्तु के अनुभव से सदृश वस्त्वन्तर की स्मृति को ही स्मरण अलङ्कार माना गया, स्मरण के अन्य रूपों को नहीं। ध्यातव्य है कि पूर्वानुभूत वस्तु की स्मृति सदृश वस्तु के अनुभव से तो हो ही आती है, अदृष्ट चिन्ता आदि से भी स्मृति उत्पन्न होती है। पूर्वानुभूत वस्तु का जिस किसी वस्तु से साहचर्य रहा हो, उसका अनुभव भी अनुभूत वस्तु की स्मृति में सहायक होता है। राम की अंगूठी देख कर सीता राम की स्मृति से विह्वल हो उठी होगी। गोदावरी का तट राम के हृदय में सीता के साथ बिताये क्षणों की स्मृति जगा देता है। ऐसी स्मृतियां सादृश्य पर नहीं, साहचर्य आदि पर अवलम्बित हैं। रुय्यक, मम्मट आदि के अनुसार केवल सादृश्यजन्य स्मृति ही स्मरणालङ्कार है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से स्मृति की प्रक्रिया यह है कि मन में किसी वस्तु का जो अनुभव होता है, उसका संस्कार मन पर बच रहता है। संस्कार के रूप में मन में स्थित अनुभूत वस्तु के समान किसी वस्तु का अनुभव करने अथवा उस वस्तु से साहचर्य आदि किसी प्रकार का सम्बन्ध रखने वाली १. द्रष्टव्य, दण्डी, काव्यादर्श २,१२०-६८ २. नरेन्द्रप्रभ सूरि, अलङ्कार महोदधि, ८ ३. यथानुभवमर्थस्य दृष्टे तत्सदृशे स्मृतिः । स्मरणम् ।-मम्मट, काव्यप्र० १०,१९६ तथा सादृश्यानुभवाद् वस्त्वन्तरस्मृतिः स्मरणम् । -रुय्यक, अलं० सर्वस्व, सूत्र सं० १४'
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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