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________________ + ४७८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण नहीं हुई है । विश्वनाथ ने आचार्य मम्मट के व्यतिरेक-भेदों को भी स्वीकार किया है । मम्मट केवल उपमेय के आधिक्य वर्णन में व्यतिरेक का सद्भाव मानते थे । उन्होंने उसके चौबीस भेद किये थे । वे भेद निम्नलिखित हैं (१) जिसमें उपमेय के उत्कर्ष एवं उपमान के अपकर्ष का हेतु उक्त हो । • हेतु के अनुक्त होने के तीन प्रकार - उत्कर्ष के हेतु का अनुक्त होना, अपकर्ष के " हेतु का अनुक्त होना, तथा दोनों का अनुक्त होना - के आधार पर अनुक्त निमित्त तीन भेद । ये चारो सादृश्य के शाब्द, आर्थ तथा आक्षिप्त होने के आधार पर तीन-तीन प्रकार के हो जाते हैं । पुनः, श्लिष्ट तथा अश्लिष्ट-भेद से ये बारह प्रकार के व्यतिरेक चौबीस प्रकार के हो जाते हैं । विश्वनाथ ने — मम्मट के द्वारा कल्पित व्यतिरेक के उक्त चौबीस भेदों को स्वीकार किया है । वे उपमान के आधिक्य वर्णन में भी व्यतिरेक मानते थे । अतः, उपमानाधिक्य रूप व्यतिरेक के भी उक्त आधार पर ही चौबीस भेद उन्होंने माने हैं । इस प्रकार उनके अनुसार उपमेयाधिक्य रूप व्यतिरेक तथा उपमानाधिक्य रूप व्यतिरेक के चौबीस चौबीस भेद हो जाते हैं । नीचे की तालिका में व्यतिरेक के भेदोपद स्पष्ट किये जा सकते हैं - - उक्त हेतु (१) व्यतिरेक - अनुक्त हेतु - ) (अनुक्तउत्कर्ष हेतु (२) अनुक्तापकर्ष हेतु (३) अनुक्त उभय हेतु (४)) श्लिष्ट ( १२ ) अश्लिष्ट (१२) = २४ ( शाब्द सादृश्य ( ४ ) आर्थ सादृश्य (४) आक्षिप्त सादृश्य (४) = १२ उपमेयाधिक्य (२४) उपमानाधिक्य (२४) =४८ दृष्टान्त दृष्टान्त अलङ्कार का निरूपण सर्वप्रथम उद्भट ने किया । उन्होंने इसे काव्य दृष्टान्त व्यपदेश दिया था । दृष्टान्त के साथ काव्य शब्द के प्रयोग का उद्देश्य न्याय आदि में प्रचलित दृष्टान्त से दृष्टान्त अलङ्कार की धारणा का भेद-निरूपण था । उद्भट के परवर्ती आचार्यों में से वामन को छोड़, प्रायः सभी आचार्यों ने दृष्टान्त का अस्तित्व स्वीकार कर उसका लक्षण -निरूपण किया है । पर उन आचार्यों ने नाम के साथ काव्य का प्रयोग अनावश्यक समझ कर केवल दृष्टान्त नाम का प्रयोग किया है । वस्तुतः अलङ्कार के नाम के -साथ काव्य शब्द का उल्लेख आवश्यक नहीं है । अलङ्कार का क्षेत्र केवल - काव्यात्मक उक्ति है । अतः, काव्य शब्द का प्रयोग न करने पर भी शास्त्रीय
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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