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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ४४६ भी आवश्यक माना। मम्मट के बाद दीपक का यही स्वरूप रुय्यक, विश्वनाथ बादि के द्वारा स्वीकृत हुआ है।' भोज ने आचार्य दण्डी का ही दीपक-लक्षण किञ्चित् शब्द-भेद से उद्धृत कर दिया है ।२ मम्मट के बाद दीपक के सम्बन्ध में दो धारणाएँ मुख्य रूप से स्वीकृत होती रही हैं—(क) उपमान एवं उपमेय-वाक्यों का एक धर्म से (क्रिया, गुण आदि से) सम्बन्ध तथा (ख) अनेक क्रियाओं का एक कारक से दीपन । प्रथम धारणा का बीज उद्भट की दीपकपरिभाषा में था, जिसमें 'अन्तर्गतोपमाधर्माः' का उल्लेख हुआ था। वामन ने उस धारणा को और स्पष्ट स्वरूप दिया था। कारक-दीपक की प्रथम कल्पना का श्रेय रुद्रट को है। इन दो धारणाओं को मिला कर मम्मट ने दीपक का जो स्वरूप स्थिर किया, वही परवर्ती आचार्यों को बहुमान्य हुआ है। भरत, भामह, दण्डी आदि के दीपक अलङ्कार में न तो उपमान-उपमेय की धारणा थी, न कारक से क्रिया-पदों के दीपन की। उन आचार्यों ने सामान्यतः दो या अधिक पदार्थों के एक धर्म से दीपन में दीपक का सद्भाव माना था। परवर्ती काल में तुल्ययोगिता की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकृत हो जाने के कारण उससे भेदनिरूपण के लिए उपमान और उपमेय-वाक्यों तक ही दीपक का क्षेत्र सीमित करने की आवश्यकता हुई। इस प्रकार ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से दीपक के तीन रूप सामने आते हैं : (क) किन्हीं दो पदार्थों का एक धर्म से सम्बन्ध-द्योतन, (ख) केवल उपमानोपमेय वाक्यों का एक धर्म से सम्बन्ध-द्योतन तथा (ग) अनेक क्रियाओं का एक कारक से दीपन । इनमें से दीपक के अन्तिम दो रूप ही परवर्ती काल में स्वीकृत हुए हैं। प्रथम को क्रियादि-दीपक तथा द्वितीय को कारक-दीपक कहा जाता है। हिन्दी के रीति-आचार्यों ने दीपक के सम्बन्ध में कोई नवीन उद्भावना नहीं की। उन्होंने मम्मट आदि के दीपक-लक्षण को ही मुख्यतः स्वीकार किया है। दीपक-भेद दीपक अलङ्कार के भेदों की कल्पना वाक्यों को दीपित करने वाले क्रियादिपद की वाक्य में स्थिति के आधार पर आरम्भ हुई । भामह ने क्रियापद के १. द्रष्टव्य-रुय्यक, अलं० सर्वस्व २४ तथा विश्वनाथ, साहित्यद० १०,६७ २. क्रियाजातिगुण द्रव्यवाचिन कत्रवतिना। सर्ववाक्योपकारश्चेत् दीपकं तन्निगद्यते ॥ -भोज, सरस्वतीकण्ठा० ४,७७ तुलनीय-दण्डी, काव्याद० २,९७ २६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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