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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [४४७ सम्बन्ध होता है, जब कि तुल्ययोगिता में अनेक उपमेय-वाक्यों का अथवा अनेक उपमान-वाक्यों का ही परस्पर सम्बन्ध एक शब्द से दीपित होता है।' वामन ने उद्भट की दीपक-धारणा को ही सूत्रबद्ध किया। उन्होंने उपमान और उपमेय-वाक्यों में एक क्रिया का सम्बन्ध होना दीपक का लक्षण माना। भरत से दण्डी तक अनेक वाक्यों के बीच एक पद का सम्बन्ध दीपक का लक्षण माना जाता रहा था। वाक्यों को दीपित करने वाला वह पद जाति, गुण, क्रिया या द्रव्य-किसी का भी वाचक हो सकता था। वामन ने केवल क्रिया-पद से अनेक वाक्यों ( उपमेय और उपमान वाक्यों ) में सम्बन्ध-निर्देश को दीपक का लक्षण स्वीकार किया। रुद्रट ने दीपक को औपम्य-गर्भ नहीं मान कर वास्तव-वर्गगत अलङ्कार माना है। इसलिए यह स्वाभाविक था कि उनके दीपक-लक्षण में अनेक वाक्यों के बीच उपमानोपमेय का सम्बन्ध आवश्यक नहीं माना गया। उन्होंने अनेक वाक्यों में एक पद से सम्बन्धसूचना की धारणा पूर्वाचार्यों से ली। क्रिया-पद के साथ कारक-पद को ‘भी उन्होंने अनेक वाक्यों का दीपक स्वीकार किया। इस प्रकार रुद्रट की दीपक-धारणा उद्भट और वामन की दीपक-धारणा से इस दृष्टि से भिन्न है कि वे उद्भट आदि की तरह दीपित होने वाले वाक्यों में उपमान-उपमेय का सम्बन्ध आवश्यक नहीं मानते । वामन से रुद्रट की धारणा इस दृष्टि से भी कुछ भिन्न है कि जहाँ वामन ने केवल क्रिया-पद को अनेक वाक्यों का उपकारक माना था, वहाँ रुद्रट ने क्रिया-पद के साथ कारक-पद को भी दीपक अलङ्कार में अनेक वाक्यों का दीपक स्वीकार किया है। स्पष्ट है कि रुद्रट की दीपक-धारणा भरत, भामह और दण्डी की धारणा के मेल में है। आचार्य कुन्तक ने केवल क्रिया-पद से अनेक वाक्यों के दीपन की धारणा को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इस धारणा के खण्डन के लिए भामह के दीपक-उदाहरणों को उद्धृत कर यह दिखाया है कि उनमें केवल क्रिया-पद को दीपक माना गया है। केवल क्रियापद से अनेक अर्थ के द्योतन में दीपक का सद्भाव १. द्रष्टव्य, उद्भट, काव्यालं० सार सं० १, २८ पर तिलक की विवृति पृ० ११ २. उपमानोपमेयवाक्येष्वेका क्रिया दीपकम् । -वामन, काव्यालं० सू० ४,३,१८ ३. द्रष्टव्य, रुद्रट, काव्यालं० ७,६४ ४. द्रष्टव्य, कुन्तक, वक्रोक्तिजी० पृ० ३९१-६७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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