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________________ ४४६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अभिधान अन्वर्थ है । अभिनवगुप्त ने भरत के दीपक - लक्षण का स्पष्टीकरण करने के क्रम में कहा है कि जहाँ विभिन्न आश्रयों अर्थात् वाक्यों में रहने वाले परस्पर साकांक्ष पदों की आकांक्षापूर्ति एक ही वाक्य से संयुक्त क्रिया, - गुण, जाति आदि करते हों, वहाँ भरत के अनुसार दीपक अलङ्कार होता है । " भामह ने भी भरत की ही तरह दीपक को अन्वर्था संज्ञा मान कर एक पद से अनेक पदार्थ के दीपन में दीपक अलङ्कार का सद्भाव स्वीकार किया । दण्डी ने भी पूर्वाचार्यों से मिलती-जुलती धारणा ही दीपक के सम्बन्ध में व्यक्त की । उनके अनुसार जहाँ जाति, गुण, क्रिया अथवा द्रव्य का वाचक कोई शब्द एकत्र रह कर अनेक वाक्यों का उपकार करता हो, वहाँ दीपक अलङ्कार होता है । 3 दण्डी का 'उपकार' शब्द भरत के 'सम्प्रदीपन' तथा भामह के 'दीपन' से अभिन्न अर्थ रखता है । आचार्य उद्भट ने सर्वप्रथम दीपक - लक्षण में उपमान और उपमेय के सम्बन्ध का स्पष्ट शब्दों में उल्लेख किया । उन्होंने दीपक में प्रधान और अप्रधान में अर्थात् प्रस्तुत और अप्रस्तुत में प्रतीयमान सम्बन्ध भी वाञ्छनीय बताया । इस तरह उनके दीपक - लक्षण का आशय होगा कि एक शब्द अनेक उपमेय और उपमान-बोधक शब्दों का जहाँ दीपन करता है, वहीं दीपक अलङ्कार होता है । तुल्ययोगिता अलङ्कार के स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना हो जाने पर दीपक के लक्षण में कुछ व्यावर्तक धर्मों की कल्पना आवश्यक थी । उद्भट ने इस आवश्यकता को समझा और दोनों में यह भेद - व्यवस्था कर दी कि दीपक में उपमान- उपमेय वाक्यों का ही एक शब्द से १. नाना ये शब्दान्तरवाक्यपदात्मानस्तेषां अधिकरणार्थानामाश्रये अर्थोऽता येषां तथाभूतानां साकांक्षाणामिति तेषां यत्सम्यक् प्रकर्षेण दीपकाकांक्षा पूरकं क्रियागुणजात्यादि तद्दीपकं यत एकेनावान्तरवाक्येनासंयुक्त सत्तथाकरोति दीपकप्रकृतित्वात्तथोक्तमित्यर्थः । - ना० शा ० अभिनव भारती, पृ० ३२४-२५ २. अमूनि कुर्वतेऽन्वर्थामस्याख्यामर्थदीपनात् । —- भामह, काव्यालं० २,२६ ३. जातिक्रियागुणद्रव्यवाचिनैकत्रवत्तिना । सर्ववाक्योपकारश्चेत् तमाहुर्दीपकं यथा ॥ दण्डी, काव्याद० २,९७ -४. आदिमध्यान्तविषयाः प्राधान्येत रयोगिनः । अन्तर्गतोपमाधर्मा यत्र तद्दीपकं विदुः ॥ - उद्भट, काव्यालं० सारसं० १,२८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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