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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ आदि परवर्ती आचार्यों का रूपक - विभाग रुद्रट के उक्त विभाग से प्रभावित है । उन आचार्यों के रूपक विभाग के तुलनात्मक ● अध्ययन की सुविधा के लिए हम के रूपक विभाग की तालिका दे रहे हैं :
:―
- मम्मट का रूपक भेद
साङ्ग
समस्तवस्तु एकदेशविषय विवर्ति
शुद्ध
रूपक
निरङ्ग
माला श्लिष्ट
परम्परित
अश्लिष्ट
शुद्ध
माला शुद्ध
माला
रुय्क का रूपक - विभाग मम्मट के उक्त विभाग से अभिन्न है । रुय्यक ने · साङ्ग और निरङ्ग के स्थान पर क्रमशः सावयव और निरवयव -शब्दों का - प्रयोग किया है। शुद्ध के लिए केवल तथा श्लिष्ट और अश्लिष्ट के लिए क्रमशः 'श्लिष्टशब्द निबन्धन' एवं 'अश्लिष्टशब्द निबन्धन' शब्दों का प्रयोग किया गया है ।
विश्वनाथ ने मम्मट और रुय्यक की रूपक - विभाजन पद्धति का ही अनुसरण किया है । उन्होंने मम्मट की तरह 'साङ्ग' और 'निरङ्ग' शब्दों का प्रयोग किया है; पर 'शुद्ध' की जगह रुय्यक की तरह 'केवल' शब्द का प्रयोग किया है । श्लिष्टशब्द निबन्धन तथा अश्लिष्टशब्दनिबन्धन शब्दों का प्रयोग भी रुय्यक के मतानुसार किया गया है ।
भोज ने रूपक के जो चौबीस भेद माने हैं, उस मान्यता में तथ्य - निरूरण की अपेक्षा संख्याविशेष के प्रति मोह ही प्रधान हेतु है । ' हिन्दी - रीति-साहित्य में रूपक - विभाग के क्षेत्र में कोई नवीन उद्भावना नहीं हुई । रुद्रट, मम्मट,
१. गुण आदि के क्षेत्र में भी गुणों की चौबीस संख्या निर्धारित करने के भोज के आग्रह की परीक्षा हम कर चुके हैं ।
द्रष्टव्य, लेखक का 'काव्य-गुणों का शास्त्रीय विवेचन' अ० १