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अलङ्कारों का स्वरूप - विकास
[8835 होती रही थी । आचार्य दण्डी ने रूपक के बोस प्रमुख भेदों का लक्षण -निरूपण कर उसके अन्य भेदों की भी सम्भावना स्वीकार की । दण्डी के द्वारा निरूपित रूपक-भेद निम्नलिखित हैं- समस्तरूपक, व्यस्तरूपक ( दोनों का सम्मिलित रूप समस्तव्यस्त-रूपक भी), सकलरूपक, अवयवरूपक, अवयविरूपक, एकाङ्ग रूपक, द्व्यङ्गादिरूपक, युक्तरूपक, अयुक्तरूपक, विषमरूपक, सविशेषणरूपक, विरुद्धरूपक, हेतुरूपक, श्लिष्टरूपक, उपमारूपक, व्यतिरेकरूपक, आक्षेपरूपक,समाधानरूपक, रूपकरूपक तथा तत्त्वापह्नवरूपक । '
आचार्य उद्भट ने समस्तवस्तुविषय मालारूपक का उल्लेख किया है । रुद्रट ने रूपक के प्रमुख दो रूपों को परिभाषित कर समासरूपक के तीन भेदों - सावयव, निरवयव तथा सङ्कीर्ण – के लक्षण दिये हैं । सावयव और निरवयव के दो-दो भेद माने गये हैं- समस्तविषय एवं एकदेशी । सावयव के सहजावयव, आहार्यावयव और उभयावयव उपभेद भी कल्पित हैं । निरवयव के शुद्ध, माला, रशना तथा परम्परित – ये चार उपभेद माने गये है । शुद्ध और माला वाक्यगत निरवयवरूपक के तथा रशना और परम्परित समस्त-रूपक के भेद हैं । सङ्कीर्ण के सहजावयव, आहार्यावयव तथा उभयावयव उपभेद स्वीकृत हैं । ' रुद्रट का रूपक - विभाग निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है :
वाक्यरूपक
समास रूपक
सावयव
निरवयव
( सङ्कीर्ण
सावयव
निरवयय सङ्कीर्ण
समस्तविषय
{ सम्म देश
समस्त विषय ( एकदेशी
{
समस्त विषय
{ एम मदेशी
समस्त विषय एकदेशी
१. द्रष्टव्य, दण्डी, काव्यादर्श २, ६६-९६ २. समस्तवस्तुविषयं मालारूपकमुच्यते ।
सहजावयव आहार्यावयव
उभयावयव
३. रुद्रट, काव्यालङ्कार, ८, ४१, ५६
शुद्ध
माला
सहजावयव आहार्यावयव
- उभयावयव
रशना परम्परित
—उद्भट, काव्यालं० सार सं० १, २५