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________________ ४३६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण __ इस प्रकार उपमा के चार तत्त्वों-उपमेय, उपमान, वाचक एवं साधारण धर्म के समग्रतः उपादान में पूर्णोपमा तथा उनमें से एक, दो तथा तीन के लोप के आधार पर लुप्तोपमा भेद कर पुनः तद्धित, समास आदि प्रत्ययों के बाधार पर दोनों के उपभेद किये गये हैं। पूर्णा के छह तथा लुप्ता के इक्कीस मेद मिला कर सत्ताइस भेद हो जाते हैं । उद्भट के इस व्याकरणाश्रित उपमा-विभाग को मम्मट, विश्वनाथ आदि परवर्ती आचार्यों ने भी स्वीकार किया है। विश्वनाथ ने उपमा के रसना आदि भेदों की कल्पना को भी स्वीकार किया है। मम्मट ने उसे स्वतन्त्र रूप से परिभाषित करने की बावश्यकता नहीं समझी थी।' - उपमा के लक्षण-निरूपण के प्रसङ्ग में साधर्म्य तथा सादृश्य पदों के प्रयोग के औचित्य पर विचार कर लेना वाञ्छनीय है। मम्मट ने परस्पर भिन्न वस्तुओं में साधयं को उपमा का लक्षण माना, सादृश्य को नहीं । साधर्म्य और सादृश्य-पदों के अर्थ में थोड़ा भेद है । वैयाकरणों की मान्यता है कि साधर्म्य शब्द का 'य' प्रत्यय समान धर्म-युक्त वस्तु या वस्तुओं के साथ सम्बन्ध का बोधक है। समान धर्म और समान धर्म वाली वस्तु के बीच का सम्बन्ध सादृश्य नहीं कहा जा सकता । पीताम्बरत्व कहने से पीला वस्त्र और पीला वस्त्र धारण करने वाले के बीच का जो सम्बन्ध प्रकट होता है, वह सादृश्य नहीं, साधर्म्य है। क्योंकि, सादृश्य दो वस्तुओं के बीच ही होता है, जो वस्तुएं समान धर्म से युक्त रहती हैं; न कि समान धर्म और उससे युक्त वस्तु के बीज । एक उदाहरण से साधर्म्य और सादृश्य का भेद स्पष्ट हो जायगा। उपमादोष का एक उदाहरण है-'हंसी के समान शुभ्र चन्द्रमा'। यहाँ उपमा के वाचक पद का प्रयोग होने से उपमा है; पर दोष यह है कि शुभ्र या धवल धर्म का हंसी के साथ सम्बन्ध नहीं। कारण यह है कि हंसी स्त्रीलिङ्ग का पद है और धवल पुल्लिङ्ग का। धवल चन्द्र और धवल हंसी के बीच सादृश्य १. ....रशनोपमा च न लक्षिता एवंविधवैचित्र्यसहस्रसम्भवात् उक्तभेदा नतिक्रमाच्च ।-मम्मट, काव्यप्रकाश, १० पृ० २३१ २. समासकृत्तद्धितास्तु यद्यपि केवलं सम्बन्धं नाभिदधति, तथापि सम्बन्धिनि वत्तंमानाः सम्बन्धं प्रवृत्तिनिमित्तमपेक्षन्त इति तेभ्यः सम्बन्धे भावप्रत्ययः । तथा “च राजपुरुषत्वमिति स्वस्वामिभावः प्रतीयते। पाचकत्वमिति क्रियाकारकसम्बन्धः । औपगवत्वमिति अपत्यापत्यवत्सम्बन्धः।-महाभाष्य पर, कैयट का प्रदीप, अध्याय ५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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