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________________ ४२६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण मतानुसार विरोधाभास की धारणा समन्वित है - परम्परागत दो विरोधधारणाओं का प्रतिफलन है । स्पष्ट है कि विरोध अलङ्कार के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ प्रचलित रही हैं। एक का प्रवर्त्तन रुद्रट ने किया और दूसरी का वामन ने । केशव ने दोनों को एक साथ मिलाने का प्रयत्न किया; पर दास ने दोनों की परस्पर स्वतन्त्र सत्ता मान कर दो अलङ्कारों की कल्पना कर ली । वामन की विरोधधारणा, जिसके लिए विरोधाभास नाम अधिक उपयुक्त है, अधिक मान्य हुई | रुद्र की धारणा को केशव आदि कुछ आचार्यों ने ही स्वीकार किया है । अर्थालङ्कार अब तक हमने उन अलङ्कारों के स्वरूप विकास का अध्ययन किया है, जो या तो शब्दगत हैं या शब्दार्थोभयगत । कुछ अलङ्कारों के शब्दार्थगतत्व के सम्बन्ध में आचार्यों ने विरोधी मत प्रकट किये हैं । अलङ्कार - विशेष के समान स्वरूप को स्वीकार करने पर भी एक आचार्य उसे शब्दालङ्कार मानते हैं तो दूसरे अर्थालङ्कार । दोनों पक्षों में अपनी-अपनी कुछ युक्तियाँ हैं । ऐसे स्थल में इतना तो मान ही लिया जाना चाहिए कि उस अलङ्कार में प्रधानता भले शब्द या अर्थ की हो, पर वह किसी-न-किसी अंश में शब्दगत भी है और अर्थगत भी । पुनरुक्तवदाभास, विरोधाभास आदि की यही स्थिति है । प्रस्तुत सन्दर्भ में हम उन अलङ्कारों के स्वरूप - विकास का अध्ययन करेंगे, जो सर्वमत से अर्थालङ्कार माने गये हैं । उपमा उपमा भारतीय काव्यशास्त्र में उपलब्ध प्राचीनतम अलङ्कारों में से एक तो है ही, महत्त्व की दृष्टि से भी वह सभी अलङ्कारों में अग्रगण्य है । वामन, अभिनव आदि आचार्यों ने काव्य के सभी स्वीकार्य अलङ्कारों का मूल उपमा की धारणा को माना था । राजशेखर ने उपमा को अलङ्कारों में मूर्धाभिषिक्त, काव्य का सर्वस्व तथा कवि - कुल की माता कहा है । अप्पय्य दीक्षित ने १ १. सम्प्रत्यर्थालङ्काराणां प्रस्तावः । तन्मूलं चोपमेति । - वामन, काव्यालं ० सू० वृत्ति पृ० १८५ तथा— उपमाप्रपञ्चश्च सर्वोऽलङ्कार इति विद्वद्भिः प्रतिपन्नमेव - ना० शा ० अभिनव भारती पृ० ३२१ २. अलङ्कारशिरोरत्नं सर्वस्वं काव्यसम्पदाम् । उपमा कविवंशस्य मातैवेति मतिर्मम ॥ - केशव मिश्र के अलङ्कार शेखर में उद्धृत, पृ० ३२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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