SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ४१३ अग्निपुराणकार ने चित्र के सात भेद स्वीकार किये - प्रश्न, प्रहेलिका, गुप्ताक्षर, च्युताक्षर, दत्ताक्षर, च्युतदत्ताक्षर तथा समस्या । इन सभी रूपों में विदग्ध - महोत्सवकारी वर्ण- कौतुक की प्रधानता रहती है । अतः, सभी चित्र भेदमाने गये हैं । हमने इस तथ्य पर अलग विचार किया है कि प्रहेलिका की धारणा का चित्र से स्वतन्त्र रूप में भी विकास हुआ है । अग्निपुराणकार ने चित्र का कुछ व्यापक अर्थ गोष्ठी में कुतूहलजनक वाग्बन्ध लेकर प्रहेलिका को चित्र का ही एक भेद स्वीकार किया है । तत्तत्प्रसिद्ध वस्तुओं के रूप में वर्ण-गुम्फ, जिसे बन्ध कहा गया है, वित्र का एक रूप है, जिसके वस्तु-स्वरूप के आधार पर अनेक भेद हो जाते 1 चित्र के स्वरूप के सम्बन्ध में भोज की धारणा भी पूर्ववर्ती आचार्यों की तद्विषयक धारणा से मिलती-जुलती ही है । आचार्य मम्मट ने केवल वस्तु की आकृतियों के रूप में वर्ण-गुम्फन कोचित्र बन्ध को ही चित्रालङ्कार के रूप में स्वीकार किया है । दुष्कर वर्णविन्यास - रूप प्रहेलिका आदि में केवल कवि की बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन होता है । अतः, उसे अकाव्य समझ कर मम्मट ने अविवेच्य माना है । 3 आचार्य रुय्यक ने मम्मट के मत का ही अनुमोदन किया है । विश्वनाथ ने खङ्गादि आकृति के रूप में किये जाने वाले वर्णगुम्फ को चित्र - अलङ्कार माना और च्युताक्षर, दत्ताक्षर आदि क्लिष्ट वर्णगुम्फ से चमत्कार उत्पन्न करने वाली रस-विरोधी प्रहेलिका के अलङ्कारत्व का खण्डन किया । " विश्वनाथ के उपरान्त चित्र के सम्बन्ध में संस्कृत - अलङ्कार - शास्त्र में कोई नवीन कल्पना नहीं की गयी । इस प्रकार संस्कृत-अलङ्कार शास्त्र के आचार्यों में चित्र के सम्बन्ध में एक बात में तो मतैक्य है कि इसमें वर्णों की क्रीड़ा से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है । विभिन्न आकृतियों में वर्णगुम्फ को चित्र अलङ्कार मानने में दण्डी, १. अग्निपुराण, अध्याय ३४३ २. द्रष्टव्य, भोज, सरस्वतीकण्ठा० २, १०६ - १४७ ३. तच्चित्र ं यत्र वर्णानां खड्गाद्या कृतिहेतुता । - मम्मट, काव्यप्र० ६ १२१ ४. वर्णानां खड्गाद्या कृतिहेतुत्वे चित्रम् । — रुय्यक, अलं० सर्वस्व, सूत्रसं० १० ५. पद्माद्याकारहेतुत्वे वर्णानां चित्रमुच्यते । तथा — रसस्य परिपन्थित्वान्ना-लङ्कारः प्रहेलिका । — विश्वनाथ, साहित्यद० १०, १५-१६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy