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अलङ्कारों का वर्गीकरण
[ ३९३ अर्थालङ्कार-वर्ग :-शेष सभी अलङ्कार, जो अर्थ पर आश्रित हैं, इस वर्ग में आते हैं। पर्याय-परिवतन-सहत्त्व इस वर्ग के अलङ्कार की कसोटी है। अर्थालङ्कार का निम्नलिखित वर्गों में विभाजन किया जा सकता है :
अप्रस्तुत विधान वाले अर्थात् औपम्यमूलक अलङ्कार :-उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अपह्नति, संशय, समासोक्ति, अन्योक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास, भ्रान्तिमान्, आक्षेप. दृष्टान्त, साम्य, स्मरण, उपमेयोपमा, अनन्वय, परिणाम, अतिशयोक्ति, तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, निदर्शना, व्यतिरेक, विनोक्ति, अप्रस्तुत प्रशंसा, सहोक्ति आदि । __वस्तुवर्णनपरक अर्थात् वास्तवमूलक अलङ्कार :-स्वभावोक्ति, समुच्चय, यथासंख्य, पर्याय, विषम, अनुमान, परिकर, परिवृत्ति, परिसंख्या, हेतु, कारणमाला, अन्योन्य, उत्तर, सार, लेश, अवसर, मीलित, एकावली, अतद्गुण, पूर्वरूप, अनुगुण, स्वगुण, भाविक, उदात्त, भाविकच्छवि आदि । ___ अतिशयमूलक :-पूर्व, विशेष, विभावना, तद्गुण, अधिक, विरोध, विषम, असङ्गति, पिहित, व्याघात, अहेतु, विशेषोक्ति, विचित्र, अत्युक्ति, कार्यकारणपौर्वापर्य-विपर्यय-रूप अतिशयोक्ति आदि।
गूढार्थप्रतीतिमूलक या व्यङ्ग य-गर्भ अलङ्कार :-सूक्ष्म, व्याजोक्ति, पिहित, गूढोत्तर, गूढोक्ति, ललित, विवृतोक्ति, प्रस्तुताङ कुर आदि ।
रसभावाश्रित अलङ्कार :-रसवत्, प्रेय, ऊर्जस्वी, समाहित, भावसन्धि, भावशबलता आदि ।
न्यायमूलक :-(क) लोकन्यायाश्रित-प्रत्यनीक, प्रतीप, मीलित, सामान्य, तद्गुण, अतद्गुण, उत्तर ।
(ख) वाक्यन्यायमूलक-यथासंख्य, पर्याय, परिवृत्ति, अर्थापत्ति, विकल्प, परिसंख्या, समुच्चय, समाधि ।
(ग) तर्कन्यायमूलक-काव्यलिङ्ग, अनुमान, प्रमाणालङ्कार आदि ।
कार्यकारण-भाव, विशेष्यविशेषण-भाव आदि के आधार पर भी अलङ्कारों के अवान्तर-भेद सम्भव हैं । उक्ति-भङ्गिमा पर आधृत लोकोक्ति, छेकोक्ति, व्याजोक्ति आदि को अलग वर्ग में भी रखा जा सकता है। मनोभाव से प्रत्यक्षतः सम्बद्ध अलङ्कारों को अलग मनोभावाश्रित-वर्ग में वर्गीकृत किया जा सकता है । इस वर्ग में प्रहर्षण, विषादन, स्मृति, भ्रान्ति, सन्देह आदि को रखा जा सकता है।