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________________ ३९४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण प्रमाता-प्रमेय, वक्ता-बोद्धा आदि की अपेक्षा रखने वाले व्याजस्तुति, वक्रोक्ति, प्रश्नोत्तर, व्याजोक्ति आदि का भी एक स्वतन्त्र वर्ग कल्पित हो सकता है । अनेक दृष्टियों से अलङ्कार का वर्गीकरण किये जाने पर एक ही अलङ्कार अनेक वर्गों में भी आ सकता है । यह अशास्त्रीय नहीं । उदाहरणार्थ, लोकन्यायाश्रित अनेक अलङ्कार वास्तव वर्गगत भी हैं। __ अलङ्कार-वर्गीकरण के आयास की सार्थकता केवल तत्तद्वर्गों में अलङ्कार के अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से ही है। स्वीकार्य अलङ्कार-वर्गों की तालिका नीचे दी जाती है : अलङ्कार शब्दाल० चित्रालं० उभयालं० मिश्रालं० अर्थालं० साल. संसृष्टि सङ्कर औपम्यमूलक वास्तव अतिशयमूलक व्यङ्ग,यगर्भ रसभावाश्रित न्यायमूलक (प्रकीर्ण) वक्ताबोद्धा मनोभावा- उक्तिमूलक विशेषणविशेष कार्यकारण गुण-दोष सापेक्ष श्रित पर आश्रित पर आश्रित पर आश्रित
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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