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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
आचार्य भिखारी दास के अलङ्कार वर्गों को निम्न तालिका से प्रकट किया जा सकता है—
अर्थालङ्कार
अलङ्कार
I
वाक्यालङ्कार
(5)
I
शब्दालङ्कार
(५)
चित्रालङ्कार
(१)
I
I
१
२
३
४
८
५
६
७
९
उपमादि, उत्प्र ेक्षादि व्यति- अतिशयोक्ति अन्यो- विरुद्धादि उल्लासादि समादि सूक्ष्मादि स्वभारेकरूपकादि आदि क्तिआदि वोक्ति आदि
संस्कृत तथा हिन्दी अलङ्कार - शास्त्र के आचार्यों के अलङ्कार वर्गीकरणप्रयास के इस परीक्षण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि काव्यालङ्कार का विभाग दो दृष्टियों से किया गया है - (क) अलङ्कार के आश्रयभूत शब्द और अर्थ की दृष्टि से तथा (ख) अर्थालङ्कारों में भी अनेक अलङ्कारों में समान रूप से पाये जाने वाले मूल तत्त्व की दृष्टि से । आश्रय के आधार पर मुख्यतः तीन अलङ्कार-वर्गों की कल्पना की गयी है - ( क ) शब्दालङ्कार-वर्ग, (ख) अर्थालङ्कार - वर्ग तथा ( ग ) उभयालङ्कार - वर्ग ।
उन तीन वर्गों के अतिरिक्त कुछ आचार्यों ने मिश्रालङ्कार - वर्ग की तथा सङ्कीर्ण या अन्योन्याश्लेषपेशल -वर्ग की भी कल्पना की है । उभय मिश्र तथा सङ्कीर्ण वर्गों की धारणा स्पष्ट नहीं रही है । कुछ आचार्यों ने उभयालङ्कारवर्ग में ही संसृष्टि और सङ्कर को रखा है । कुछ आचार्यों के द्वारा उभयालङ्कार-वर्ग में शब्दार्थोभयगत अलङ्कार रखे गये हैं । मिश्रालङ्कार-वर्ग की भी स्थिति स्पष्ट नहीं । एक तो इस वर्ग की सत्ता बहुत कम आचार्यों ने स्वीकार की है, दूसरे यह मत भी स्थिर नहीं हो पाया है कि इस वर्ग में केवल उन्हीं अलङ्कारों का वर्गीकरण किया जाय, जिनमें दो या अधिक अलङ्कारों की प्रकृति का मिश्रण है, या उनका भी, जिनमें एकाधिक अलङ्कार के साथ रहने की धारणा है । सङ्कीर्ण या अन्योन्याश्लेषपेशल - वर्ग में केवल अलङ्कारों की संसृष्टि या उनका सङ्कर रखा गया है ।