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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [३८९ स्वभावोक्ति-वर्ग के अलङ्कारों का समान तत्त्व वाचकपद-मूलकता को स्वीकार किया गया है। अतः, सूक्ष्म आदि व्यङ्ग यप्रधान अलङ्कारों से स्वभावोक्ति आदि वाचकपदप्रधान अलङ्कार भिन्न-धर्मा हैं। दास के अर्थालङ्कार-विभाग की इस परीक्षा से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने कुछ अलङ्कारों को एक वर्ग में रखने के समय उन अलङ्कारों में अन्तर्निहित कुछ मूल-तत्त्वों को ध्यान में अवश्य रखा था। उन वर्गों का स्पष्ट नामकरण नहीं होने के कारण मूल-तत्त्व की धारणा अवश्य ही कुछ अस्पष्ट रह गयी है; किन्तु कई वर्गों के मूलाधार का स्पष्ट उल्लेख भी दास ने कर दिया है। अतः, भिखारी दास के अलङ्कार-वर्गों के सम्बन्ध में कन्हैयालाल पोद्दार की यह मान्यता प्रमाण-पुष्ट नही है कि दास ने अलङ्कारों का क्रम मूल-तत्त्वों के आधार पर नहीं रखा । २ भिखारी दास के वर्गीकरण में थोड़ी अव्यवस्था भी अवश्य रह गयी है। उपमादि वर्ग से व्यतिरेक रूपकादि वर्ग को अलग करने का एक आधार यह माना जा सकता है कि सादृश्यमूलक होने पर भी उपमा आदि भेदाभेदतुल्यप्रधान हैं तो रूपक आदि अभेद प्रधान, पर प्रश्न यह है कि उस अभेदप्रधान सादृश्यमूलक अलङ्कार-वर्ग में व्यतिरेक को कैसे गिना जा सकता है ? अतिशयोक्ति-वर्ग के अलङ्कारों का मूल-तत्त्व भी यदि अतिशय की धारणा को स्वीकार किया जाय तो उदात्त की इस वर्ग में गणना उचित नहीं जान पड़ती। वर्गीकरण-विषयक ये छोटी-छोटी अव्यवस्थाएँ उपेक्षणीय ही मानी जा सकती हैं, फिर भी डॉ० भगीरथ मिश्र के इस अतिगामी कथन से सहमत होना कठिन है कि इस प्रकार अनेक अलङ्कारों का सामान्य आधार हूँढ़ कर उनका वर्ग बाँधना दास की विशेषता है, जैसा कि न किसी ने पहले और न किसी ने उनके पीछे किया।3 डॉ० मिश्र का. यह कथन इस सुधार के साथ मान्य है कि हिन्दी-रीति-आचार्यों में दास का वर्गीकरण-प्रयास सर्वाधिक प्रामाणिक है। दास ने वाक्यालङ्कार-वर्ग की कल्पना कर प्राचीन आचार्यों के द्वारा अर्थालङ्कार के रूप में स्वीकृत यथासंख्य, एकावली, कारणमाला, उत्तरोत्तर, रसनोपमा, रत्नावली, पर्याय और दीपक को इस स्वतन्त्र वाक्यालङ्कार-वर्ग में विभाजित किया है। १. भिखारी दास, काव्यनिर्णय १७ पृ० ४५७ २. कन्हैयालाल पोद्दार, काव्यकल्पद्रुम, भाग २, प्राक्कथन, पृ० ४२ ३. डॉ० भगीरथ मिश्र, हिन्दी काव्यशा० का इति०, पृ० १३७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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