SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण गम्यमान होता है तो इसके विपरीत समासोक्ति में प्रस्तुत की उक्ति से अप्रस्तुत की व्यञ्जना होती है। प्रस्तुताङ्कर में एक प्रस्तुत के वर्णन से दूसरे प्रस्तुत का भी बोध हो जाता है। व्याजस्तुति में निन्दा तथा स्तुति की उक्ति से क्रमशः स्तुति और निन्दा की व्यञ्जना होती. है। आक्षेप में विधि-मुख से निषेध आदि की व्यञ्जना होती है। निष्कर्ष यह कि अन्योक्त्यादि वर्ग के सभी अलङ्कारों में एक अर्थ के कथन से अन्य अर्थ की व्यञ्जना होती है। विरुद्धादि अलङ्कार-वर्ग की कल्पना आचार्य रुय्यक के विरोधमूलक अलङ्कार-वर्ग के आधार पर की गयी है। इस वर्ग के अलङ्कारों का मूल-तत्त्व विरोध है। आचार्य रुय्यक ने इस वर्ग में विरोध, विभावना, व्याघात आदि बारह अलङ्कारों की गणना की थी। भिखारी दास ने उनमें से छह को विरुद्धादि अलङ्कार-वर्ग में रखा है। उल्लास आदि वर्ग में परिगणित चौदह अलङ्कारों के समान मल-तत्व का स्पष्ट निर्देश भिखारी दास ने किया है। उन्होंने कहा है कि मैंने गुण-दोष की धारणा के आधार पर चौदह अलङ्कारों को उल्लासादि वर्ग में रखा है।' स्पष्टतः, अलङ्कारों के मूल-तत्त्व के आधार पर प्रस्तुत अलङ्कार-वर्ग कल्पित है । अलङ्कारों के मूल में गुण-दोष-धारणा का समान आधार स्थिर कर एक नवीन अलङ्कार-वर्ग की कल्पना का श्रेय भिखारी दास को है। ___सम आदि सोलह अलङ्कारों के एक वर्ग की कल्पना का आधार दास ने उचित-अनुचित बात के कहने का चमत्कार माना है। इस प्रकार इस वर्ग की कल्पना भी अलङ्कारों के मूल में निहित एक सामान्य तत्त्व के आधार पर ही की गयी है। सूक्ष्म आदि वर्ग में अलङ्कार-वर्गीकरण का आधार ध्वनि को माना गया है। इस वर्ग के अलङ्कारों में समान रूप से वस्तु व्यङ्ग य हुआ करती है। रुय्यक आदि ने भी गूढार्थप्रतीतिमूलक अलङ्कारों का स्वतन्त्र वर्ग माना है। यह धारणा रुय्यक की धारणा से मिलती-जुलती है। १. सब गु न-दोष-प्रकार गुनि, किएँ एक ही ठौर थिति । -भिखारी दास, काव्यनिर्णय, १४ पृ० ३५७ - २. वही, १५ पृ० ३८५ ३. वही, १६ पृ० ४३१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy