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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३८७ पूर्वानुभूत वस्तु का स्मृतिजन्य ज्ञान भी ज्ञान की विशेष दशा है। द्वकोटिक ज्ञान सन्देह तथा एककोटिक सत्यासत्य ज्ञान निश्चय, भ्रम, सम्भावना, स्मृति आदि का हेतु सादृश्य होता है। हमने सादृश्य से स्मृति, भ्रान्ति, सन्देह, सम्भावना आदि मानसिक दशा के आविर्भाव के मनोवैज्ञानिक तथ्य पर काव्यालङ्कार के मनोवैज्ञानिक अध्ययन के सन्दर्भ में विस्तार से विचार किया है। स्पष्ट है कि दास ने मनोवैज्ञानिक आधार पर उत्प्रेक्षादि-वर्ग में अलङ्कारों का वर्गीकरण किया है। इन अलङ्कारों के मूल में समान तत्त्व है दो वस्तुओं के ज्ञान का सम्बन्ध-विशेष ।। व्यतिरेक-रूपकादि-वर्ग के रूपक, परिणाम और उल्लेख रुय्यक आदि के द्वारा अभेद-प्रधान सादृश्यमूलक-वर्ग में रखे गये थे। रुय्यक की उस धारणा को लेकर दास ने उसमें गम्यमान औपम्य के व्यतिरेक को मिला कर एक वर्ग की कल्पना कर ली है। अतिशयोक्ति-वर्ग के अलङ्कारों में समान रूप से अतिशयता की धारणा है। अन्योक्त्यादि-वर्ग में ऐसे अलङ्कारों को परिगणित किया गया है, जिनमें समान रूप से एक अर्थ के कथन से अन्य अर्थ की व्यञ्जना होती है । जहाँ कवि अभिप्रेत अर्थ का साक्षात् कथन न कर ऐसी भङ्गी से वर्णन करता है कि अभीष्ट अर्थ अभिव्यजित हो जाता है; ऐसी उक्तियों के विभिन्न रूपों में विभिन्न अलङ्कारों की कल्पना अलङ्कार-शास्त्र में की गयी है। भिखारी दास ने एक उक्ति से अन्य उक्ति की व्यञ्जना की धारणा पर आधृत अलङ्कारों को एक वर्ग में वर्गीकृत किया है। इस वर्ग के अलङ्कारों का मूल-तत्त्व है एक अर्थ की उक्ति से अन्यार्थ की व्यञ्जना। अतः, इस वर्ग के अलङ्कारों को अन्यार्थव्यञ्जनामूलक कहा जा सकता है। यह भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए कि अन्योक्ति आदि वर्ग में केवल अन्य उक्ति अर्थात् अप्रस्तुत-उक्तिमूलक अलङ्कार ही हैं । इस वर्ग के अप्रस्तुतप्रशंसा में यदि अप्रस्तुतकथन से प्रस्तुत १. द्रष्टव्य-प्रस्तुत ग्रन्थ, अध्याय ८ २. डॉ० ओम्प्रकाश ने अन्योक्ति से केवल अप्रस्तुतोक्ति का अर्थ मान लिया है । (द्रष्टव्य, रीति-अलङ्कार साहि० पृ० ४६१) । ऐसा अर्थ मानने पर समासोक्ति आदि का इस वर्ग में समावेश सम्भव नहीं होगा। दास ने इस वर्ग के अलङ्कारों का मूलाधार अन्य की उक्ति से अन्य की व्यञ्जना को माना है। वह उक्ति अप्रस्तुत की भी हो सकती है और. प्रस्तुत की भी।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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