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________________ ३८६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण १०. स्वभावोक्ति वर्ग :-(१) स्वभावोक्ति, (२) हेतु, (३) प्रमाण, (४) काव्यलिङ्ग, (५) निरुक्ति, (६) लोकोक्ति, (७, छेकोक्ति, (८) प्रत्यनीक, (९) परिसंख्या और (१०) प्रश्नोत्तर। एक-एक वर्ग के अलङ्कारों का निरूपण 'काव्य-निर्णय' के एक एक उल्लास में किया गया है। इस प्रकार अष्टम उल्लास से सत्रहवें उल्लास तक क्रमशः उपरिलिखित अलङ्कार-वर्गों के अलङ्कारों का विवेचन किया गया है। आपाततः उक्त वर्गीकरण उद्भट आदि के वर्ग-विभाजन की तरह उद्देश्यहीन लगती है, पर भिखारी दास ने तत्तत् अलङ्कारों को तत्तद्वर्गों में विभाजित करने का उद्देश्य इतस्ततः व्यक्त कर दिया है । उपमादि वर्ग में दास ने औपम्यमूलक अलङ्कारों को रखा है। उन्होंने इस वर्ग के अलङ्कारों को उपमान और उपमेय का विकार कहा है।' इस वर्ग के दो खण्ड स्पष्ट हैं-उपमा के आर्थी और श्रौती-भेद के आधार पर इस वर्ग के अलङ्कार गम्यमान-सादृश्य तथा वाच्य-सादृश्य खण्डों में विभक्त माने जा सकते हैं। उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा एवं प्रतीप में सादृश्य वाच्य तथा दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, विकस्वर, निदर्शना, तुल्ययोगिता तथा प्रतिवस्तूपमा में सादृश्य गम्य होता है। वाच्य तथा गम्यमान सादृश्य की दृष्टि से इस वर्ग के अलङ्कारों के क्रम-विन्यास को देखने से भिखारी दास की शास्त्रीय दृष्टि का पता चलता है। औपम्य-गर्भ अलङ्कारों के एक वर्ग की परम्परागत धारणा पर इस वर्ग की कल्पना आधृत है। उत्प्रेक्षादि-वर्ग में अलङ्कार-विभाजन दास की मनोवैज्ञानिक सूझ का परिचायक है। इस वर्ग में उन अलङ्कारों को वर्गीकृत किया गया है, जिनमें वस्तुओं के सारुप्य के कारण वस्तु-ज्ञान की विभिन्न स्थितियों का वर्णन रहा करता है। ज्ञान निश्चयात्मक तथा अनिश्चयात्मक होता है। इस आधार पर निश्चय, सन्देह आदि अलङ्कारों का स्वरूप-विधान होता है । निश्चयात्मक ज्ञान भी सत्य और मिथ्या होता है। भ्रम में एक वस्तु में अन्य वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान होता है; पर वह ज्ञान मिथ्या होता है। सिद्ध वस्तु-ज्ञान तथा असिद्ध वस्तु-ज्ञान के आधार पर भी ज्ञान की दो कोटियां होती हैं। उत्प्रेक्षा में दो वस्तुओं का अभेद-ज्ञान असिद्ध या सम्भावना के रूप में व्यक्त होता है। सदृश वस्तु से उसके समान वस्तु की स्मृति हो आती है। यह १. "उपमान और उपमेइ कौ, है विकार समझौ सुचित । -भिखारीदास, काव्यनिर्णय, पृ० १५६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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