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अलङ्कारों का वर्गीकरण
[३८५ (४) प्रतीप, (५) श्रौती उपमा, (६) दृष्टान्त, (७) अर्थान्तरन्यास, (८) विकस्वर, (8) निदर्शना, (१०) तुल्ययोगिता और (१३) प्रतिवस्तूपमा ।
२. उत्प्रेक्षादि वर्ग :-(१) उत्प्रेक्षा, (२) अपह्न ति, (३) स्मरण, (४) भ्रम, और (५) सन्देह ।
3. व्यतिरेक-रूपकादि वर्ग :- (१) व्यतिरेक, (२) रूपक, (३) परिणाम और (४) उल्लेष या उल्लेख । परिणाम को तो परिणाम-रूपक कहकर रूपक का ही प्रकार माना गया है; पर उल्लेख की स्वतन्त्र सत्ता मानी गयी है', यद्यपि उसकी प्रकृति परम्परित-माला-रूपक से मिलतीजुलती है। ___४. अतिशयोक्ति आदि वर्ग :-(१) अतिशयोक्ति, (२) उदात्त, (३) अधिक, (४) अल्प और (५) विशेष ।
५. अन्योक्ति आदि वर्ग :-(१) अप्रस्तुतप्रशंसा, (२) प्रस्तुताङ्कर, (३) समासोक्ति, (४) व्याजस्तुति, (५) आक्षेप एवं (६) पर्यायोक्ति ।
६. विरुद्धादि वर्ग :-(१) विरुद्ध, (२) विभावना, (३) व्याघात, (४) विशेषोक्ति, (५) असङ्गति तथा (६) विषम ।
७. उल्लासादि वर्ग :-(१) उल्लास, (२) अवज्ञा, (३) अनुज्ञा, (४) लेश, (५) विचित्र, (६) तद्गुण, (७) स्वगुण, (८) अतद्गुण, (६) पूर्वरूप, (१०) अनुगुण, (११) मीलित, (१२) सामान्य, (१३) उन्मीलित और (१४) विशेष।
८. समादि वर्ग :-(१) सम, (२) समाधि, (३) परिवृत्त, (४) भाविक, (५) प्रहर्षण, (६) विषादन, (७) सम्भव, (८) असम्भव, (६) समुच्चय, (१०) अन्योन्य, (११) विकल्प, (१२) सहोक्ति, (१३) विनोक्ति, (१४) प्रतिषेध, (१५) विधि तथा (१६) काव्यार्थापत्ति।
९. सूक्ष्मादि वर्ग:-(१) सूक्ष्म, (२) पिहित, (३) युक्ति, (४) गूढोत्तर, (५) गूढोक्ति, (६) मिथ्याध्यवसाय, (७) ललित, (८) विवृतोक्ति, (९) व्याजोक्ति, (१०) परिकर और .(११) परिकराङ कुर । १. एक में बहु बोध के, बहु गुन सो 'उल्लेख'। परंपरित-मालांन सों, लीनों भिन्न विसेख ॥
-भिखारी दास, काव्यनिर्णय, पृ० २६३ २५