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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
उन्होंने उपमा आदि को विशिष्ट अलङ्कार माना है । केशव के द्वारा -निरूपित सभी शब्दगत तथा अर्थगत अलङ्कार विशिष्ट अलङ्कार हैं । इन विशिष्ट अलङ्कारों का विभाजन उन्होंने न तो शब्दार्थ-रूप आश्रय के आधार पर किया है और न अलङ्कार के मूल तत्त्वों के आधार पर ही । अतः, केशव का वर्गीकरण महत्त्वपूर्ण नहीं । साधारण और विशिष्ट वर्गों में विभाजन नयी सूझ नहीं । अलङ्कारवादी अलङ्कार की व्यापक परिभाषा 'सौन्दर्यमलङ्कारः' में समग्र काव्य-तत्त्वों को सामान्य रूप से अलङ्कार मान लेते हैं और उस अलङ्कार से ( काव्य से ) उपमा आदि का वैशिष्ट्य बताने के लिए इन उपमा आदि काव्यालङ्कारों को विशिष्टालङ्कार कहते हैं । अतः, विशिष्टालङ्कार की धारणा प्राचीन ही है । साधारण अलङ्कार को चार वर्गों में बाँट कर उसके सम्बन्ध में केशव ने कुछ नवीन धारणा अवश्य "प्रकट की है; पर वस्तुतः उनमें से किसी वर्ग में ऐसा अलङ्कार नहीं रखा गया है, जो किसी भी संस्कृत या हिन्दी - आचार्य के द्वारा अलङ्कार के रूप में स्वीकृत हो । अतः, प्रस्तुत सन्दर्भ में वह विवेच्य नहीं । वर्णों का विवरण, वर्ण्य वस्तुओं का विवरण अलङ्कार के रूप में स्वीकार्य नहीं । भोज ने भी नगर, अर्णव, शैल, ऋतु आदि के वर्णन को प्रबन्धगत अलङ्कार माना था; पर वह महाकाव्य आदि के अङ्ग के रूप में ही स्वीकृत हुआ, अलङ्कार के रूप में नहीं । वर्णों का विवरण केशव मिश्र तथा अमर ने भी दिया है; पर उस "विवरण को अलङ्कार मीमांसा के अन्तर्गत नहीं माना जा सकता ।
आचार्य भिखारीदास कृत वर्गीकरण
आचार्य भिखारी दास ने काव्यालङ्कार का वर्गीकरण कुछ नवीन दृष्टि - से किया है । हम देख चुके हैं कि आश्रय के आधार पर अलङ्कारों का वर्गीकरण शब्दालङ्कार, अर्थालङ्कार तथा उभयालङ्कार - वर्गों में परम्परा से 'किसी-न-किसी रूप में होता रहा था; पर भिखारी दास ने शब्दालङ्कार-वर्ग - तथा अर्थालङ्कार-वर्ग के अतिरिक्त एक तीसरे वर्ग - ' वाक्यालङ्कार-वर्ग' की कल्पना की और उसमें आठ अलङ्कारों को रखा । उन्होंने चित्र को शब्दालङ्कार वर्ग से स्वतन्त्र चित्रालङ्कार-वर्ग में रखा। 3 इन चार वर्गों के
१. केशव, कविप्रिया, प्रभाव - १६
२. भिखारी दास, काव्य निर्णय, १८ पृ० ४६५ ३. वही, २१, पृ० ५७५