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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
(३४) अतद्गुण, (३५) व्याजोक्ति, (३६) वक्रोक्ति, ( ३७ ) स्वभावोक्ति, (३८) भाविक, और ( ३६ ) उदात्त ।
समासोक्ति को रुय्यक ने गम्यमानौपम्य वर्ग में रखा था । विद्यानाथ ने उसे प्रतीयमानवस्तु वर्ग में गिना है । उपमेयोपमा को भी विद्यानाथ ने गम्यमानौपम्य वर्ग में परिगणित किया है । रुय्यक ने इसे भेदाभेदतुल्यप्रधान सादृश्यगर्भ अलङ्कार-वर्ग में रखा है। स्पष्टतः, विद्यानाथ ने कुछ नवीन दृष्टि से उक्त चार वर्गों में अलङ्कारों का विभाजन किया है । प्रतीयमानौपम्य अलङ्कार - वर्ग की कल्पना आचार्य रुय्यक के गम्यमानम्यसादृश्य वर्ग के आधार पर की गयी है । रुय्यक की तरह विद्यानाथ ने भी तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त आदि को प्रतीयमानौपम्य वर्ग में रखा है; पर रुय्यक के विनोक्ति, समासोक्ति, परिकर, अप्रस्तुतप्रशंसा, पर्यायोक्त अर्थान्तरन्यास, व्याजस्तुति और आक्ष ेप को गम्यमानौपम्य वर्ग में रखने के मत को विद्यानाथ
स्वीकार नहीं किया है । विद्यानाथ ने रूपक, परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान् आदि को प्रतीयमानौपम्य वर्ग में वर्गीकृत किया है, जिन्हें रुय्यक ने इतर वर्गों में रखा था ।
प्रतीयमान- रसभावादि-वर्ग की कल्पना कर विद्यानाथ ने रसवदादि अलङ्कार के वर्गीकरण की समस्या का समाधान कर दिया है । रुय्यक इस समस्या को बिना सुलझाये छोड़ गये थे । इस वर्ग की कल्पना के लिए विद्यानाथ श्रेय के भागी हैं ।
विद्यानाथ ने उपरिलिखित अलङ्कार वर्गों के अतिरिक्त अलङ्कार के अवान्तर विभाग भी किये, जो अधिकांशतः आचार्य रुय्यक के वर्गीकरणसिद्धान्त पर आधृत है । वे अवान्तर विभाग - विद्यानाथ के शब्दों में 'अलङ्कारकक्ष्याविभाग' - निम्नलिखित हैं :
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४. साधर्म्यमूलक
(क) भेदप्रधान, (ख) अभेदप्रधान तथा ( ग ) भेदाभेदप्रधान २. विरोधमूलक
३. वाक्यन्यायमूलक ४. लोकव्यवहारमूलक और
५. तर्कन्यायमूलक ६. शृङ्खलावैचित्र्यमूलक
७. अपह्नबमूलक ८. विशेषणवैचित्र्यमूलक