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अलङ्कारों का वर्गीकरण
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८. अन्योन्याश्लेषपेशल - (१) संसृष्टि और (२) सङ्कर । शब्दालङ्कार-वर्ग में विद्याधर ने पुनरुक्तवदाभास, अनुप्रास, यमक, चित्र, छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास तथा लाटानुप्रास की गणना की है । अलङ्कारों के वर्गीकरण के क्षेत्र में विद्याधर ने कोई मौलिक योगदान नहीं दिया है ।
विद्यानाथकृत वर्गीकरण
विद्यानाथ ने 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' में पहले आश्रय-भेद के आधार पर अलङ्कार के तीन वर्ग स्वीकार किये हैं- शब्दगत, अर्थगत तथा उभयगत । अनुप्रास आदि को शब्दालङ्कार, उपमा आदि को अर्थालङ्कार तथा लाटानुप्रास, उभयसंसृष्टि आदि को उभयगत अलङ्कार माना गया है । अर्थालङ्कार के मुख्य चार विभाग कर पुनः अलङ्कार - कक्ष्याविभाग में विद्यानाथ ने - आचार्य रुय्यक के मत का अनुसरण किया। उनके चार प्रमुख अलङ्कारवर्ग तथा उन वर्गों में विभाजित अलङ्कार निम्नलिखित हैं
१. प्रतीयमान वास्तव - वर्ग - (१) समासोक्ति, (२) पर्यायोक्त, (३) आक्षेप, (४) व्याजस्तुति ( ५ ) उपमेयोपमा, (६) अनन्वय, (७) अतिशयोक्ति, · ( 5 ) परिकर, (2) अप्रस्तुतप्रशंसा तथा ( १० ) ( अनुक्त निमित्त) विशेषोक्ति । २. प्रतीयमानौपम्य वर्ग : - ( १ ) रूपक, (२) परिणाम, (३) सन्देह, (४) भ्रान्तिमान्, (५) उल्लेख, ( ६ ) ( सापह्नव ) उत्प्र ेक्षा, (७) स्मरण, ( 5 ) तुल्ययोगिता, ( 8 ) दीपक, (१०) प्रतिवस्तूपमा, (११) दृष्टान्त, (१२) सहोक्ति, (१३) व्यतिरेक, (१४) निदर्शना और ( १५ ) श्लेष । ३. प्रतीयमानरसभावादि वर्ग : - ( १ ) रसवत्, ( २ ) प्र ेय, (३) ऊर्जस्वी, (४) समाहित, (५) भावोदय, (६) भावसन्धि तथा ( ७ )
भावशबलता ।
अस्फुटप्रतीयमान-वर्ग : - ( १ ) उपमा, (२) विनोक्ति, (३) अर्थान्तरन्यास, (४) विरोध, (५) विभावना, ( ६ ) ( गुण निमित्त ) विशेषोक्ति, (७) विषम, (८) सम, (६) चित्र, (१०) अधिक, (११) अन्योन्य, (१२) कारणमाला, (१३) एकावली, (१४.) व्याघात, (१५) मालादीपक, (१६) काव्यलिङ्ग, (१७) अनुमान, (१८) सार, (१९) यथासंख्य, (२०) अर्थापत्ति, (२१) पर्याय, (२२) परिवृत्ति, (२३) परिसंख्या, (२४) विकल्प, (२५) समुच्चय, (२६) समाधि, (२७) प्रत्यनीक, ( २८ ) प्रतीप, (२६) विशेष, (३०) मीलित, (३१) सामान्य, (३२) असङ्गति, (३३) तद्गुण,