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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
तो उन्हें उन अलङ्कारों के मूल-तत्त्व के आधार पर नवीन वर्ग की कल्पना करनी चाहिए थी। यदि नवीन वर्ग की कल्पना नहीं कर वे रुद्रट के वास्तववर्ग को ही स्वीकार कर लेते-जैसे रुय्यक के द्वारा अवर्गीकृत संसृष्टि और सङ्कर के वर्गीकरण के लिए उन्होंने रुद्रट के सङ्कीर्ण के आधार पर अन्योन्याश्लेषपेशल-वर्ग को स्वीकार किया है तो समस्या का समाधान सरलता से हो जाता; पर इस उलझन को सुलझाने का प्रयास नहीं कर विद्याधर ने चलते ढंग पर रुय्यक के वर्गीकरण को आदर्श मान कर अलङ्कारों का वर्गीकरण कर दिया है।
पहले आश्रय के आधार पर शब्द और अर्थ-वर्गों में अलङ्कारों का विभाजन कर विद्याधर ने अर्थालङ्कारों को वर्गानुक्रम से इस प्रकार प्रस्तुत किया है
१. भेदप्रधान वर्ग-(१) उपमा, (२) उपमेयोपमा, (३) अनन्वय तथा (४) स्मरण ।
२. अभेदप्रधान वर्ग-(क) आरोपमूलक-(१) रूपक, (२) परिणाम, (३) सन्देह, (४) भ्रान्तिमान्, (५) उल्लेख और (६) अपह्नति ।
(ख) अध्यवसाय मूलक-(१) उत्प्रेक्षा और (२) अतिशयोक्ति ।
३. गम्यौपम्याश्रयी वर्ग-(१) तुल्ययोगिता, (२) दीपक, (३) प्रतिवस्तूपमा, (४) दृष्टान्त,(५) निदर्शना,(६) व्यतिरेक, (७) सहोक्ति,(८) विनोक्ति, (8) समासोक्ति, (१०) परिकर, (११) परिकराङ कुर, (१२) श्लेष, (१३) अप्रस्तुतप्रशंसा, (१४) अर्थान्तरन्यास, (१५) पर्यायोक्ति और )१६) आक्षेप ।
४. विरोधगर्भ-(१) विरोध, (२) विभावना, (३) विशेषोक्ति, (४) अतिशयोक्ति, (५) असङ्गति, (६) विषम, (७) सम, (८) विचित्र, (६) अधिक, (१०) अन्योन्य, (११) विशेष तथा (१२) व्याघात ।
५. शृङ्खलाकार-(१) कारणमाला, (२) एकावली, (३) मालादीपक, (४) सार, (५) काव्यलिङ्ग, (६) अनुमान, (७) यथासंख्य, (८) पर्याय, (९) परिवृत्ति. (१०) परिसंख्या, (११) अर्थापत्ति, (१२) समुच्चय और (१३) समाधि । इन्हें तर्कवाक्यन्यायमूलक भी कहा गया है।
६. लोकन्यायाश्रयो-(१) प्रत्यनीक, (२) प्रतीप, (३) मीलित, (४) सामान्य, (५) तद्गुण, (६) अतद्गुण, (७) उत्तर और (८) प्रश्नोत्तर । ___७. बलाद्गूढार्थप्रतातिमूलक-(१) सूक्ष्म, (२) व्याजोक्ति, (३) वक्रोक्ति, (४) स्वभावोक्ति, (५) भाविक और (६) उदात्त ।