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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३७५ अलङ्कार के मूलभूत तत्त्वों का निर्धारण भारतीय अलङ्कार शास्त्र को आचार्य रुय्यक का महनीय योगदान है। ____ रुय्यक ने मूलतत्त्वों के आधार पर अर्थालङ्कारों को प्रस्तुत कर काव्य के समग्र अलङ्कारों के आश्रय के आधार पर विभाजन का भी सङ्केत दिया है। उन्होंने शब्द, अर्थ तथा उभय वर्गों में अलङ्कारों का विभाजन स्वीकार किया है । 'अलङ्कार-सर्वस्व' में यमक आदि को शब्दालङ्कार, उपमा आदि को अर्थालङ्कार तथा लाटानुप्रास आदि को उभयालङ्कार कहा गया है। विद्याधरकृत वर्गीकरण-विद्याधर ने 'एकावली' में अलङ्कार-वर्गीकरण बहुलांशतः आचार्य रुय्यक के वर्गीकरण-सिद्धान्त के आधार पर किया है। भाषाभेद से रुय्यक के अलङ्कार-वर्गों को स्वीकार कर उन्होंने संसृष्टि और सङ्कर के वर्गीकरण के लिए अन्योन्याश्लेषपेशल वर्ग की कल्पना की है। इस कल्पना का मूल आचार्य रुद्रट के श्लेष-भेद सङ्कीर्ण-वर्ग की कल्पना में है। रुद्रट के सङ्कीर्ण के लिए ही अन्योन्याश्लेषपेशल व्यपदेश प्रयुक्त हुआ है। आचार्य रुय्यक के सादृश्यगर्भ अलङ्कार के तीन उपवर्गो-भेदाभेदतुल्य-प्रधान, अभेद-प्रधान तथा गम्यमानौपम्य–के आधार पर विद्याधर ने तीन अलङ्कार-वर्गों की कल्पना की है। वे हैं-भेद-प्रधान, अभेद-प्रधान तथा गम्यौपम्याश्रयी। विरोधमूलक तथा शृङ्खलामूलक वर्गों को विद्याधर ने भी स्वीकार किया है। रुय्यक के न्यायमूलक अलङ्कारों के तीन वर्गोंलोकन्याय, वाक्यन्याय तथा तकन्याय—में से केवल लोकन्यायाश्रयी अलङ्कार-वर्ग की सत्ता विद्याधर ने स्वीकार की है। रुय्यक के गूढार्थप्रतीतिमूलक अलङ्कार-वर्ग को विद्याधर ने बलाद्गूढार्थप्रतीतिमूलक-वर्ग कहा है। विद्याधर ने रुय्यक के वर्गीकरण को स्वीकार कर उनके द्वारा अवर्गीकृत अलङ्कारों को भी उन्हीं वर्गों में समाविष्ट करने का प्रयास किया है। उदाहरणार्थ-स्वभावोक्ति, भाविक तथा उदात्त को उन्होंने बलाद्गूढार्थप्रतीतिमूलक-वर्ग में वर्गीकृत कर दिया है। किन्तु, यह वर्गीकरण अविचारित जान पड़ता है। स्वभावोक्ति, भाविक तथा उदात्त में किसी गूढ अर्थ की व्यञ्जना नहीं रहती, उनमें वस्तु-स्वरूप का और समृद्धि का यथार्थ तथा चित्रात्मक वर्णन अपेक्षित माना जाता है। रुय्यक स्वभावोक्ति आदि के इस स्वभाव से परिचित थे। इसीलिए उन्होंने उन अलङ्कारों का वर्गीकरण अलङ्कार के स्वीकृत वर्गों में नहीं किया था। विद्याधर यदि उन अलङ्कारों का वर्गीकरण करना ही चाहते थे ( और उन्हें वर्गीकृत करने की चेष्टा उचित ही होती)
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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