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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३७३ का औचित्य बताते हुए आचार्य रुय्यक ने कहा है कि सम में विषम अलङ्कार का वैधर्म्य रहता है; अतः उसे इसी वर्ग में रखा जाना चाहिए। ___अतिशयोक्ति की गणना सादृश्यगर्भ तथा विरोधगर्भ-दोनों वर्गों में करने के कारण रुय्यक को इस अलङ्कार को दो बार परिभाषित करना पड़ा है। रुद्रट के वर्गीकरण की परीक्षा के क्रम में यह कहा जा चुका है कि वर्गानुरोध से एक अलङ्कार की दो परिभाषाओं की कल्पना वर्गीकरण के अधार की अपूर्णता का परिचायक है। ३. शृङ्खलामूलक :-इस वर्ग में रखे गये अलङ्कार में पद या वाक्य अन्य पद या वाक्य के साथ शृङ्खला के रूप में सम्बद्ध रहते हैं। इस वर्ग में चार अलङ्कार रखे गये हैं :-(१) कारणमाला, (२) एकावली, (३) मालादीपक और (४) सार । इन अलङ्कारों में कारण, विशेषण आदि की शृङ्खलाबद्ध स्थिति रहती है। ४. न्यायमूलक :-शास्त्रीय तथा लौकिक न्याय से सम्बद्ध अलङ्कारों को तीन वर्गों में रखा गया है (क) तर्कन्यायमूलक (ख) वाक्यन्यायमूलक या काव्यन्यायमूलक तथा (ग) लोकन्यायमूलक तर्कन्यायमूलक अलङ्कार-(१) काव्यलिङ्ग और (२) अनुमान । वाक्यन्यायमूलक अलङ्कार-(१) यथासंख्य, (२) पर्याय, (३) परिवृत्ति, (४) अर्थापत्ति, (५) विकल्प, (६) परिसंख्या, (७) समुच्चय तथा (८) समाधि। लोकन्यायमूलक अलङ्कार-(१) प्रत्यनीक, (२) प्रतीप, (३) मीलित, (४) सामान्य, (५) तद्गुण, (६) अतद्गुण और (७) उत्तर। इस प्रकार उक्त सत्रह अलङ्कार लोक तथा शास्त्र के न्याय पर आधृत माने गये हैं। ५. गूढार्थप्रतीतिमूलक-इस वर्ग में उन अलङ्कारों को रखा गया है जिनमें गूढ अर्थ की प्रतीति हुआ करती है। गूढार्थ-बोध में ही उन अलङ्कारों का सौन्दर्य निहित रहता है । वे अलङ्कार हैं-(१) सूक्ष्म, (२) व्याजोक्ति एवं (३) वक्रोक्ति। __इस प्रकार रुय्यक ने अपने चौंसठ अलङ्कारों का वर्ग-विभाजन किया है। उनके अनेक अलङ्कार अवर्गीकृत रह गये हैं। उदाहरणार्थ-स्वभावोक्ति,
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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