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________________ ३७२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण यह साधर्म्य कहीं वाच्य होता है और कहां प्रतीयमान । उक्त उपवर्गों में सादृश्य- गर्भ अर्थालङ्कारों का विभाजन इस प्रकार किया गया है— भेदाभेदतुल्यप्रधान सादृश्यगर्भ अलङ्कार : - (१) उपमा, (२) उपमेयोपमा, (३) अनन्वय और (४) स्मरण । अभेदप्रधान सादृश्यगर्भ अलङ्कारः - (अ) आरोपमूलक – (१) रूपक, (२) परिणाम, (३) सन्देह, (४) भ्रान्ति, (५) उल्लेख तथा ( ६ ) अपह्नति । (आ) अध्यवसायमूलक - ( १ ) उत्प्र ेक्षा एवं (२) अतिशयोक्ति । गम्यमान-औपम्य सादृश्यगर्भ अलङ्कार : - ( १ ) तुल्ययोगिता, ( २ ) दीपक, (३) प्रतिवस्तूपमा, (४) दृष्टान्त, (५) निदर्शना, (६) व्यतिरेक, (७) सहोक्ति, (८) विनोक्ति, (९) समासोक्ति, (१०) परिकर, (११) श्लेष, (१२) अप्रस्तुतप्रशंसा, (१३) पर्यायोक्त, (१४) अर्थान्तरन्यास, (१५) व्याजस्तुति तथा ( १६ ) आक्षेप | सादृश्य की तीन प्रकार की स्थितियों के आधार पर सादृश्यगर्भ अलङ्कारवर्ग के उक्त तीन उपवर्ग माने गये हैं । प्रथम उपवर्ग के अलङ्कारों में उपमेय और उपमान में सादृश्यगत भेदाभेद में तुल्यता रहती है । द्वितीय उपवर्ग के अलङ्कारों में दोनों में ( उपमान -उपमेय में ) अभेद कथन रहता है । अभेद कथन के दो रूप हैं— आरोप- प्रधान और अध्यवसाय - प्रधान । रूपक आदि में आरोप की तथा उत्प्रेक्षा और अतिशयोक्ति में अध्यवसाय की प्रधानता रहती है । तृतीय उपवर्ग में वे अलङ्कार रखे गये हैं, जिनमें औपम्य व्यङ्गय रहता है । रुय्यक के अनुसार सादृश्यगर्भ अलङ्कार के भेदाभेद-तुल्य - प्रधान खण्ड में उपमा आदि चार; अभेदप्रधान खण्ड में रूपक आदि आरोपमूलक छह तथा उत्प्रेक्षा और अतिशयोक्ति; इन अध्यवसायमूलक दो को मिला कर कुल आठ तथा गम्यमानौपम्य खण्ड में तुल्ययोगिता आदि सोलह अलङ्कार आते हैं । इस प्रकार रुय्यक के सादृश्य या औपम्यगर्भ अलङ्कारों की संख्या अट्ठाइस है । २. विरोधगर्भ : - इस वर्ग में उन बारह अलङ्कारों की गणना की गयी है, जिनके मूल में विरोध की भावना निहित रहती है । वे अलङ्कार हैं(१) विरोध, (२) विभावना, (३) विशेषोक्ति, (४) सम, (५) विषम, (६) विचित्र, (७) अधिक, ( 5 ) अन्योन्य, (६) विशेष (१०) व्याघात, (११) कार्यकारणपौर्वापर्य रूप अतिशयोक्ति और (१२) असङ्गति । विषम के साथ सम को भी विरोधगर्भ अलङ्कार वर्ग में वर्गीकृत करने
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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