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हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएं
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प्रताप साहि
'व्यङ्गयार्थ कौमुदी' में प्रताप साहि ने नायिका-भेद के साथ अलङ्कार का वर्णन किया है। अलङ्कार के क्षेत्र में नव-चिन्तन प्रताप साहि का उद्देश्य नहीं था। उनका उद्देश्य था, एक साथ नायिका-भेद, व्यङ्ग यार्थ तथा अलङ्कारों का वर्णन । अमीर दास ___ 'श्रीकृष्ण-साहित्य-सिन्धु' के पञ्चम तरङ्ग में अमीर दास ने शब्दालङ्कारों का वर्णन किया है। चित्र का एक घड़ी-बन्ध भेद इसमें कल्पित है।' उनके शब्दार्थालङ्कारों के विवेचन पर आचार्य मम्मट का प्रभाव है। निहाल ___ अमीर दास की तरह निहाल ने भी ब्रजभाषा को पंजाबी लिपि में लिखा है। ब्रजभाषा तथा पंजाबी लिपि में लिखित 'साहित्यशिरोमणि' की रचना का आधार उन्होंने स्वयं 'काव्यप्रकाश' को माना है। दामोदर ___ दामोदर अलङ्कारों की संख्या को परिमित करने के पक्षपाती थे। अतः, उन्होंने 'अर्थालङ्कार-मञ्जरी' में केवल छत्तीस अर्थालङ्कारों का विवेचन किया है। वे शेष अलङ्कारों का अन्तर्भाव उन्हीं छत्तीस में मानते थे। ग्वाल
ग्वाल ने 'अलङ्कार-भ्रमभञ्जन' में खण्डन-मण्डन की पद्धति से अलङ्कारविषयक मान्यताओं का परिष्कार करने की चेष्टा की थी। उन पर 'काव्यप्रकाश', 'चन्द्रालोक' आदि का प्रभाव स्पष्ट है। कवि दास ___ कवि दास ने 'अलङ्कार-माला' में परम्परा से वणित अलङ्कारों का ही वर्णन किया है। वे भाषा-कवि में आचार्य केशव की धारणा से प्रभावित थे। गद्य में अलङ्कारों का विवेचन दास कवि ने स्पष्टता से किया है।
१. द्रष्टव्य-अमीर दास, श्रीकृष्ण साहित्य-सिन्धु, पृ० १६६ २. मम्मट मत जे काव्य के कछु पदारथ चिह्न। ग्रन्थ बांध पूरन करयो कवि निहाल मतिहीन ॥
-निहाल, साहित्यशिरोमणि, ३३६ ३. इन में, आवत दौर त्यों सब सरिता सिन्धु में।
-दामोदर, अर्थालङ्कारमञ्जरी, पृ० १ २३