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________________ ३५२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण लेकर अनेक नये बन्धों की कल्पना कर ली है। मम्मट आदि आचार्यों ने चित्र के शब्द-चित्र तथा अर्थ-चित्र; दो भेद माने थे। बलवान सिंह ने दोनों के सङ्कर से सङ्कर-चित्र की भी कल्पना की है।' ईश्वर कवि ईश्वर कवि-रचित 'चित्रचमत्कृतकौमुदी', जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, केवल चित्रालङ्कार पर लिखित पुस्तक है । ईश्वर कवि के अनुसार चित्र के दो भेद हैं—(क) श्रौती, जिनका सम्बन्ध सुनने से है तथा (ख) दृष्टि, जिनका सम्बन्ध देखने से ।२ ईश्वर कवि ने चित्रालङ्कारों का संक्षिप्त परिचय मात्र दिया है। रणधीर सिंह रणधीर ने 'काव्यरत्नाकर' में अपनी रचना का आदर्श 'चन्द्रालोक', तथा 'काव्यप्रकाश' के अतिरिक्त भाषा के अन्य ग्रन्थों को बताया है। 3 डॉ० भगीरथ मिश्र के अनुसार उक्त ग्रन्थ में अलङ्कारों का विवेचन 'चन्द्रालोक' के आधार पर किया गया है। गिरधर दास गिरधर दास ने 'भारतीभूषण' में 'कुवलयानन्द' में निरूपित अलङ्कारों का निरूपण किया है। उपमा-वाचक शब्दों के दो वर्ग गिरधर ने माने हैं-- मुलशब्द तथा इतर;" पर इस कल्पना में कोई नवीनता नहीं। दण्डी आदि के द्वारा गिनाये वाचक शब्दों को ही उक्त दो वर्गों में प्रस्तुत किया गया है। आचार्य मम्मट ने श्रौती तथा आर्थी उपमा के लिए अलग-अलग वाचक शब्द गिनाये हैं। गिरधर दास उसी मान्यता से प्रभावित हैं। १. अब शब्दचित्र बखानुपुनि अर्थ चित्र हि जानु । संकर सुचित्र हि मानु, त्रय भेद चित्र हि आनु॥ __-बलवानसिंह, चित्रचन्द्रिका, ५ पृ० ३ः २. सोई पुनि द्व बिधि जानि मैं स्रौती द्रष्टि ठानि। स्रोती सुनतहि सुष बढ़त द्रष्टि देषत मानि॥ -ईश्वर कवि, चित्रचमत्कृत कौमुदी, ५, पृ० १ ३. द्रष्टव्य-रणधीर सिंह, काव्यरत्नाकर, उद्ध त भगीरथ मिश्र, हिन्दी काव्यशास का इतिहास, पृ० १६७ ४. द्रष्टव्य-भगीरथ मिश्र, हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास, पृ० १६७ ५. द्रष्टव्य-गिरधर दास, भारतीभूषण, पृ० २.
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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