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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [३५१ राय शिवप्रसाद शिवप्रसाद ने 'रस-भूषण' में रस के साथ अलङ्कार के लक्षण दिये हैं। इस वर्णन-परिपाटी का श्रीगणेश याकूब खाँ ने किया था। अलङ्कार के लक्षण मुख्यतः 'भाषाभूषण' के आधार पर दिये गये हैं। शिव प्रसाद ने रसविशेष के साथ अलङ्कार-विशेष को सम्बद्ध करने का प्रयास किया है । उदाहरणार्थ-हास्यरस के साथ व्याजस्तुति का, करुण रस के साथ प्रथम विषम का, रौद्र के साथ रूपक का, वीर के साथ उत्प्रेक्षा का, भयानक के साथ उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोक्ति का (सङ्कर-रूप में), बीभत्स के साथ विभावना का, अद्भुत के साथ सम्भावना का तथा शान्त के साथ भेदकातिशयोक्ति का सम्बन्ध माना गया है। किसी रस के साथ विशेष अलङ्कार का सम्बन्ध मानना युक्तिसङ्गत नहीं। अलङ्कार शब्दार्थ के अनियत धर्म हैं। अतः, सभी अलङ्कार शब्दार्थ के सौन्दर्य की वृद्धि कर रसोपकारक हो सकते हैं। वे रस के बाधक भी हो सकते हैं और तटस्थ भी। रस और अलङ्कार के पारस्परिक सम्बन्ध पर हमने अपरत्र विचार किया है। प्रताप साहि 'व्यङ्ग यार्थ कौमुदी' में प्रतापसाहि ने प्रसङ्गात् अलङ्कारों का भी वर्णन कर 'दिया है। इसमें पूर्ववणित अलङ्कारों का संक्षिप्त परिचय-मात्र दिया गया है । कृष्ण भट्ट 'अलङ्कार-कलानिधि' में कृष्ण भट्ट ने परम्परागत काव्यलङ्कारों का ही लक्षण-निरूपण किया है। सटीक और सुन्दर उदाहरणों के चयन में ही उनकी मौलिकता है। बलवान सिंह ___ आचार्य बलवान सिंह ने 'चित्र चन्द्रिका' में केवल चित्रालङ्कारों का विशद वर्णन किया है। चित्र का विवेचन तो संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र में ही स्वतन्त्र रूप से होने लगा था; पर चित्र का इतना विस्तृत विवेचन करने वाला स्वतन्त्र ग्रन्थ संस्कृत में नहीं लिखा गया था। यह ठीक है कि संस्कृत के आचार्यों ने भी चित्र के असन्त भेदों की सम्भावना स्वीकार की थी। पद्म, मुरज, खड्ग आदि कुछ चित्र-बन्धों का वर्णन कर संस्कृत आचार्यों ने वैसे ही अन्य बन्धों की कल्पना सम्भव मानी थी। बलवान सिंह ने उन सङ केत-सूत्रों का सहारा १. द्रष्टव्य-राय शिवप्रसाद, रसभूषण, पृ. ६४-६६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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