________________
३५० ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
था। इसके विपरीत कुछ आचार्यों ने यमक के सन्दर्भ में ही अनुप्रास का • स्वरूप-निरूपण किया है। अनुप्रास की धारणा का विकास तो वस्तुतः आचार्य भरत की यमक-धारणा से ही हुआ है। दोनों में साम्य भी बहुत है। एक में वर्ण की आवृत्ति अपेक्षित है और दूसरे में पद की। पद वर्गों का ही समुदाय है। अतः पदावृत्ति और वर्णावृत्ति में तात्त्विक भेद नहीं।
उमेद राय ने शब्दालङ्कारों के अतिरिक्त एक सौ आठ अर्थालङ्कारों का निरूपण किया है।
ब्रह्मदत्त
ब्रह्मदत्त ने 'दीप-प्रकाश' की रचना का आधार दूलह के 'कविकुल-कण्ठाभरण, को माना है। प्रस्तुत पुस्तक के तृतीय प्रकाश में सभेद अनुप्रास का, जिसमें यमक भी अन्तर्भूत है, निरूपण है तथा चतुर्थ प्रकाश में अर्थालङ्कारों का 'विवेचन किया गया है। देव का गुणवत् अलङ्कार भी 'दीपप्रकाश' में स्वीकृत है ।
'पद्माकर
पद्माकर ने 'पद्माभरण' में काव्य के अलङ्कारों का विवेचन किया है। अर्थालङ्कार-प्रकरण में 'कुवलयानन्द' की तरह एक सौ अर्थालङ्कारों का निरूपण कर पद्माकर ने रसवदादि, भावोदयादि तथा प्रमाणालङ्कारों का निरूपण 'किया है। एक सौ अलङ्कारों के बाद रसवदादि पन्द्रह अलङ्कारों का वर्णन 'कविकुलकण्ठाभरण' के आधार पर है । संसृष्टि और सङ्कर के लक्षणउदाहरण अन्त में दिये गये हैं। प्रमाणालङ्कार-निरूपण के क्रम में बैरीसाल के 'भाषाभरण' में कल्पित आगम, आचार तथा आत्मतुष्टि प्रमाण को भी पद्माकर ने स्वीकार किया है । कई अलङ्कारों के उदाहरण में भी पद्माकर बैरीसाल के ऋणी हैं। स्पष्ट है कि पद्माकर ने 'चन्द्रालोक', 'कुवलयानन्द', 'कविकुलकण्ठाभरण', 'भाषाभरण' आदि ग्रन्थों के आधार पर अलङ्कार निरूपण ‘किया है।
१. एक सो आठ सब अलंकार, ___ अर्थ के कहे बुद्ध यानुसार ।-उभेदराय, वागीभूषण पृ० ३६ २. दीप नरायन सिंह की लहि आयुस कवि ब्रह्म। कविकुलकंठाभरण लखि कीन्हों ग्रन्थ अरम्भ ॥
बहादत्त, दीक प्रकाश, पृ० ५