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________________ ३४६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण याकूब खाँ याकूब खाँ ने 'रसभूषण' में नायिका-भेद और काव्यालङ्कार का एक साथ निरूपण करने का नया प्रयोग किया। उनकी मान्यता थी कि नायिका की शोभा के लिए आभूषण की आवश्यकता होती है। अतः नायिका-भेद के वर्णन के साथ अलङ्कार का विवेचन होना चाहिए।' 'रसभूषण' में एक अलङ्कार और एक नायिका-भेद का लक्षण एक साथ दिया गया है। याकूब ने अद्भत रस के साथ यमक-अलङ्कार का वर्णन किया है। इस प्रकार रस-विशेष के साथ अलङ्कार-विशेष के सम्बन्ध का भी सङ केत 'रसभूषण' में मिलता है। काव्यालङ्कारों के स्वरूप-निरूपण में कोई नवीनता नहीं है । रसिक सुमति ___ 'अलङ्कार-चन्द्रोदय' में रसिक सुमति ने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया है कि उनके अलङ्कार-निरूपण का आदर्श ‘कुवलयानन्द' है। उन्होंने अर्थालङ्कारों के लक्षण-निरूपण के उपरान्त वृत्त्यनुप्रास, छेकानुप्रास तथा लाटानुप्रास शब्दालङ्कारों का भी निरूपण किया है। सोमनाथ 'रसपीयूष निधि' की बाइसवीं तरङ्ग में सोमनाथ ने चित्र-सहित शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों का विशद विवेचन किया है। उनका शब्दालङ्कारविवंचन मम्मट आदि आचार्यों की पद्धति पर तथा अर्थालङ्कार विवेचन कुवलयानन्द की पद्धति पर है। कहीं-कहीं सोमनाथ ने किसी अलङ्कार के सम्बन्ध में विभिन्न संस्कृत-आचार्यों का मत भी उद्धृत किया है। इससे स्पष्ट है कि अपने पूर्ववर्ती संस्कृत तथा हिन्दी के आचार्यों के अलङ्कारसिद्धान्त का अध्ययन कर सोमनाथ ने प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर अलङ्कारनिरूपण किया है। १. द्रष्टव्य-याकूब खाँ, रसभूषण, पृ० ४७ २. रसिक कुवलयानन्द लखि, अलि मन हरस बढाइ। अलंकार-चन्द्रोदयहिं, वरनतु हियहुलसाइ ।। -रसिक सुमति, अलंकार चन्द्रोदय, पृ०१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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