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________________ ३४० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण चित्र-भेदों का निरूपण किया है। यही नहीं, हिन्दी में केवल चित्र-निरूपण पर स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे गये हैं। __ हिन्दी-रीति-साहित्य में कुछ आचार्यों ने अलङ्कार का रस, गुण आदि से नियत सम्बन्ध जोड़ने का भी प्रयास किया है। पर, ऐसा प्रयास निष्फल ही सिद्ध हुआ है। ऐसे प्रयास को अलङ्कार-क्षेत्र में उन आचार्यों का कोई महत्त्वपूर्ण योगदान नहीं माना जा सकता। __ नीचे हम प्राचीन आचार्यों के मतानुसार अलङ्कार का विवेचन करने वाले हिन्दी-रीति-आचार्यों की अलङ्कार-धारणा का सामान्य परिचय प्रस्तुत कर आचार्य कुलपति मिश्र कुलपति का 'रस-रहस्य' हिन्दी-रीतिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 'रस-रहस्य' के सातवें और आठवें वृत्तान्तों में क्रमशः शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों का निरूपण किया गया है । अलङ्कार-विवेचन में कुलपति ने मम्मट की अलङ्कार-धारणा को आदर्श माना है। कुलपति ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मम्मट ने काव्य के जिन अलङ्कारों का वर्णन किया है, उन्हीं का निरूपण मैंने भाषा में किया है।' स्पष्ट है कि कुलपति ने किसी नवीन अलङ्कार की कल्पना की आवश्यकता नहीं समझी। मम्मट तथा संस्कृत और हिन्दी के अन्य समर्थ आचार्यों की कृतियों का अध्ययन कर आचार्य कुलपति ने काव्यालङ्कारों का प्रामाणिक विवेचन किया है। आचार्य पदुमन दास ‘पदुमन दास ने 'काव्यमंजरी' के दशवें तथा ग्यारहवें अध्यायों में क्रमशः शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों का लक्षण-निरूपण किया है। उन्होंने अलङ्कारक्षेत्र में कोई नवीन उद्भावना नहीं कर आचार्य केशव की 'कविप्रिया' में निरूपित अलङ्कारों को ही आदर्श मान कर काव्यालङ्कार का निरूपण किया है । श्रीधर या मुरलीधर ओझा श्रीधर के 'भाषाभूषण' में अप्पय्य दीक्षित के 'कुवलयानन्द' में विवेचित अलङ्कारों का लक्षण-निरूपण किया गया है। १. जिते साज हैं कवित के, मम्मट कहे बखानि। . . ते सब भाषा में कहे, 'रस रहस्य' में आनि ॥ -कुलपति मिश्र, रस रहस्य, पृ० ८८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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