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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [३३६ संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र में प्रचलित ( सूत्र शैली को छोड़ ) अलङ्कारनिरूपण की प्रायः सभी शैलियों का अनुवर्तन हिन्दी रीति साहित्य में हुआ है। दण्डी, मम्मट, विश्वनाय आदि की तरह पृथक्-पृथक् पदों में लक्षण और उदाहरण की शैली के साथ एक ही पद में लक्षण एवं उदाहरण की 'कुवलयानन्द' की शैली को भी अपनाया गया है । अलङ्कार-निरूपण के माध्यम से अपने आश्रयदाता के गुण-गान की 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' की पद्धति पर हिन्दी में अनेक अलङ्कार-ग्रन्थ लिखे गये हैं। ऐसे ग्रन्थों में प्रत्येक अलङ्कार को परिभाषित कर आश्रयदाता के महिमा-वर्णनपरक स्वनिर्मित पदों का उदाहरण दिया गया है। अलङ्कार-लक्षणों की अपेक्षा अलङ्कार-उदाहरणों में रीति-आचार्यों की महनीय मौलिकता है। यह रीति-आचार्यों के कवित्व की उपलब्धि है। ____संस्कृत-आचार्यों की तरह हिन्दी में भी विविध काव्याङ्ग-निरूपण के साथ अलङ्कार का विवेचन करने वाले तथा अलङ्कार सर्वस्वकार, कुवलयानन्दकार, आदि की तरह केवल अलङ्कार का निरूपण करने वाले आलङ्कारिकों के दो वर्ग पाये जाते हैं; पर संस्कृत में जहाँ अधिकांश आचार्यों ने अन्य काव्याङ्गनिरूपण के क्रम में अलङ्कार का स्वरूप-निरूपण किया है, वहाँ हिन्दी में केवल काव्यालङ्कार का निरूपण करने वाले आचार्यों की संख्या ही अधिक है। यह हिन्दी-रीति-साहित्य में चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति का स्वाभाविकपरिणाम है। 'कुवलयानन्द' की पद्धति पर हिन्दी में भी अनेक आचार्यों ने केवल अर्थालङ्कारों का निरूपण किया है; किन्तु अधिकांश आचार्यों ने शब्दालङ्कार एवं अर्यालङ्कार का (कुछ ने अभयालङ्कार का भी) एक साथ लक्षण-निरूपण किया है। हिन्दी में चित्र के विविध रूपों का जिसकी धारणा का विकास अनुप्रास या यमक अलङ्कार की धारणा से हुआ था और जिसने संस्कृत में ही खड्ग आदि की आकृति में निबन्धन के रूप में यमक और अनुप्रास से स्वतन्त्र अस्तित्व पा लिया था-स्वतन्त्र रूप से विशद विवेचन किया गया है। चित्रकाव्य जो संस्कृत के सुरुचि-सम्पन्न पाठकों की दृष्टि में नीरस होने के कारण हेय और उपेक्षगीय था, हिन्दी-रीति-काल की दरबारी सभ्यता में दूर की कौड़ी लाकर श्रोता-मण्डली को विस्मय-विमुग्ध कर देने के कारण बहुत जनप्रिय हो गया था। इसलिए अनेक रीति-आचार्यों ने उसके स्वरूप का विस्तृत मीमांसा की है। भिखारी दास ने 'काव्य-निर्णय' के एक अध्याय में केवल
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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