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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
भिखारी दास आचार्य भिखारी दास के 'काव्य-निर्णय' में काव्यालङ्कारों के स्वरूप की विस्तृत मीमांसा की गयी है। इस ग्रन्थ में दो स्थलों पर अलङ्कारों का -स्वरूप-निरूपण किया गया है। तीसरे उल्लास में अलङ्कारों का संक्षिप्त विवेचन है, और आठवें से अठारहवें उल्लास तक विशद विवेचन। तीसरे उल्लास में निरूपित अलङ्कारों का भी पुनः विवेचन किया गया है और उनके अतिरिक्त कुछ अन्य अलङ्कार भी आगे स्वीकृत हुए हैं। इस प्रकार तीसरे उल्लास तथा आठवें से अठारहवें उल्लासों में विवेचित अलङ्कारों में संख्यागत भेद स्पष्ट है । दास ने उक्त स्थलों में अलङ्कार-विवेचन को शैली भी अलग-अलग अपनायी है। तृतीय उल्लास में एक ही दोहे में लक्षण-उदाहरण वाली 'कुवलयानन्द', 'भाषाभूषण' आदि की शैली भी अपनायी गयी है और अलग-अलग पदों में लक्षणउदाहरण भी दिये गये हैं। पर आठवें से अठारहवें उल्लासों में पृथक्-पृथक छन्दों में लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं। तृतीय उल्लास की अपेक्षा अगले उल्लासों में अलङ्कार-विशेष के भेदोपभेद भी अधिक दिये गये हैं। दो स्थलों पर अलङ्कार-विवेचन का कोई सङ्गत कारण नहीं दीखता। अस्तु, तृतीय उल्लास में निरूपित अलङ्कार निम्नलिखित हैं :
उपमा, अनन्वय, प्रतीप, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, निदर्शना, तुल्ययोगिता, उत्प्रेक्षा, अपह्न,ति, स्मरण, भ्रम, सन्देह, व्यतिरेक, रूपक, अतिशयोक्ति, उदात्त, अधिक, अन्योक्ति, व्याजस्तुति, पर्यायोक्त, आक्षेप, विरुद्ध, विभावना, 'विशेषोक्ति, उल्लास, तद्गुण, मीलित, उन्मीलित, सम, भाविक, समाधि, सहोक्ति, विनोक्ति, परिवृत्ति, सूक्ष्म, परिकर, स्वभावोक्ति, काव्यलिङ्ग, परिसंख्या, प्रश्नोत्तर, यथासंख्य, एकावली, पर्याय, संसृष्टि तथा सभेद सङ्कर ।
आठवें से अठारहवें उल्लासों तक विवेचित अलङ्कार निम्नलिखित हैं:
उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, प्रतीप, श्रौती उपमा, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास विकस्वर, निदर्शना. तुल्ययोगिता, प्रतिवस्तूपमा; उत्प्रेक्षा, अपह्न ति, स्मरण, भ्रम, सन्देह; व्यतिरेक, रूपक ( परिणाम रूपक-भेद के रूप में परिगणित) उल्लेख; अतिशयोक्ति, उदात्त, अधिक, अल्प, विशेष; ( अन्योक्ति प्रधान→) अप्रस्तुतप्रशंसा, प्रस्तुताङ कुर, समासोक्ति, व्याजस्तुति, आक्षेप, पर्यायोक्ति; (विरोधमूलक→) विरुद्ध या विरोधाभास, विभावना, व्याघात, विशेषोक्ति, असङ्गति, विषम; उल्लास, अवज्ञा, अनुज्ञा, लेश, विचित्र, तद्गुण,