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हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३३३ उनका वर्णन किया गया ।' दूलह ने एक सौ के अतिरिक्त सत्तर-बहत्तर आधुनिक अलङ्कारों की ओर सङ्कत किया है ।२ पर, उनका अभिप्राय किनकिन अलङ्कारों से था, यह स्पष्ट नहीं। उन्होंने अप्पय्य की तरह रसवदादि भाव-सम्बन्धी तथा प्रमाण-सम्बन्धी अलङ्कारों का भी निरूपण किया है।
'कुवलयानन्द' के स्मृति एवं सन्देह को क्रमशः स्मृतिमान तथा सन्देहवान कहा गया है। नाम में यह परिवर्तन भ्रान्तिमान के सादृश्य के आधार पर हुआ है। दोनों के स्वरूप की कल्पना में कोई नवीनता नहीं।
__ व्याजस्तुति का नाम व्याजोक्ति कर दिया गया है। प्राचीन आचार्यों के व्याजोक्ति अलङ्कार की भी सत्ता स्वीकार करने के कारण व्याजोक्ति का दो बार उल्लेख करना पड़ा है। रघुनाथ के 'रसिकमोहन' में भी व्याजस्तुति को व्याज-उक्ति कहने से ऐसी ही अव्यवस्था उत्पन्न हुई है। दूलह ने व्याज-उक्ति नाम को व्याजस्तुति से अधिक व्यापक समझा होगा। उन्हें लगा होगा कि व्याजस्तुति नाम केवल व्याज से की जाने वाली स्तुति का ही बोधक हो सकता है, व्याज से की जाने वाली निन्दा का नहीं; इसीलिए व्याजोक्ति कह कर भी दूलह ने लक्षण में व्याजस्तुति तथा व्याज-निन्दा शब्दों का भी प्रयोग किया है।४ वस्तुतः व्याजस्तुति में स्तुति का अर्थ 'वर्णन' था। उसका नामपरिवर्तन उचित नहीं।
संसृष्टि और सङ्कर का विवेचन भी दूलह ने संस्कृत आचार्यों की मान्यता के अनुरूप ही किया है। सङ्कर के चार भेद-अङ्गाङ्गिभाव, समसुप्रधान,. सन्देह तथा वाचकानुप्रवेश-स्वीकृत हैं और उसे नृसिंहाकार कहा गया है।
शब्दालङ्कार-संसृष्टि के प्रसङ्ग में दूलह ने छेकानुप्रास और यमक का वर्णन किया है।५
स्पष्ट है कि प्राचीन अलङ्कारों के कुछ नवीन नाम की कल्पना को छोड़ 'कविकुलकण्ठाभरण' में किसी नवीन अलङ्कार की कल्पना नहीं की गयी है।
१. अरथालङ कृत शत प्राचीन कहे ते कहे।
-दूलह, कविकुलकण्ठाभरण, ७१ २. आधुनिक सत्तरि-बहत्तरि प्रमाने है। वही, ७१ ३. वही, ७२-७६ ४. द्रष्टव्य-वही, ३४ . ५. आवृति अक्षर अमित की है छेकानुप्रास; ... बार-बार पद अर्थ जहँ भिन्न यमक परकास । वही, ७९