SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [३३१ का अभिमत जान पड़ता है तो यह अलङ्कार शोभाकर मित्र के तन्त्र अलङ्कार से, जिसमें नाना फल की प्राप्ति के लिए प्रयत्न पर बल दिया गया है, नाम्ना ही भिन्न सिद्ध होता है। सङ्कीर्ण नाम का प्रयोग संस्कृत के आचार्यों ने अलङ्कारों के सङ्कर या उनकी संसृष्टि के लिए किया था; पर देव ने उस नाम को लेकर तन्त्र से उसे मिला दिया। शोभाकर की अलङ्कारधारणा के साथ देव की अलङ्कार-विषयक मान्यता के इस साम्य को देखते हुए यह अनुमान ठीक नहीं जंचता कि देव ने शोभाकर का 'अलङ्काररत्नाकर' नहीं देखा होगा। प्रत्युक्ति में उक्ति-प्रत्युक्ति की धारणा व्यक्त की गयी है। यह धारणा प्राचीन आचार्यों के उत्तर या उसीके भेद प्रश्नोत्तर से भिन्न नहीं। यह पुरातन अलङ्कार का नूतन अभिधान-मात्र है। देव ने कुछ अलङ्कारों के नवीन भेदोपभेदों की भी कल्पना की है। यमक का सिंहावलोकन-भेद (अपरिभाषित), उपमा के स्वभाव, योग, सङ्कीर्णभाव, उचित, प्रतिकार, उल्लेख, आक्षेप, गर्व आदि भेद स्वीकार किये गये हैं।। सिंहावलोकन को आचार्य भिखारी दास ने परिभाषित किया है। अतः, उसकी कल्पना के स्रोत पर हम भिखारी की अलङ्कार-धारणा के सन्दर्भ में ही विचार करेंगे। स्वभावोपमा, आक्षेपोपमा, उल्लेखोपमा आदि की कल्पना तत्तदलङ्कारों के साथ उपमा की धारणा को मिला कर की गयी है। उचितोपमा आदि उपमा-भेद की कल्पना का बीज आचार्य भरत की सदृशी उपमा की धारणा में देखा जा सकता है। सङ्कीर्णभावोपमा की धारणा विचित्र-सी जान पड़ती है। इसके उदाहरण में 'खीझति-सी, रीझति-सी, रूसति, रिसानी-सी' आदि को प्रस्तुत किया गया है । एक तो रीझना, खीझना आदि क्रिया में सादृश्यवाचक 'सी' आदि लगाने से उसकी सम्भावना ही प्रकट होती है, उपमा नहीं; दूसरे, भावों के उपमान बनाये जाने में स्वतन्त्र उपमा-भेद की कल्पना आवश्यक भी नहीं। उपमा अलङ्कार का सञ्चारी आदि मानसिक भावों के साथ देव ने जो सम्बन्ध जोड़ा है, उसपर आक्षेप करते हुए डॉ० नगेन्द्र ने ठीक ही लिखा है कि-"प्रीति, मद, ईर्ष्या आदि संचारियों तथा वैर आदि स्वभाव-वृत्तियों से उपमा का ग्रन्थिबन्धन निरर्थक है। ४. द्रष्टव्य-शोभाकर, अलं० रत्ना० ८६ तथा उसकी वृत्ति पृ० १४६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy