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________________ ३३० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण जसवन्त सिंह ने अप्पय्य के लेश अलङ्कार का नाम लेख कर दिया था। देव ने भी लेख नाम वहीं से लिया है। देव का लेख-लक्षण भी जसवन्त के लेख-लक्षण के समान ही है।' अतः, लेख को देव की नूतन उद्भावना नहीं माना जा सकता। गुणवत् अलङ्कार की परिभाषा में कहा गया है कि जहाँ गुणवान की सङ्गति से गुणहीन भी गुणवान बन जाय, वहाँ गुणवत् अलङ्कार होता है । इसके विपरीत जहाँ गुणहीन के संसर्ग से गुणवान भी गुणहीन बन जाय, वहाँ प्रत्यनीक अलङ्कार देव ने माना है ।२ गुणवत् नाम तो मतिराम के गुणवन्त के आधार पर कल्पित है; पर देव के गुणवत् का स्वरूप मतिराम के गुणवन्त से थोड़ा भिन्न है। देव के गुणवत् और प्रत्यनीक का स्वरूप प्राचीन आचार्यों के तद्गुण के स्वरूप से इतना मिलता-जुलता है कि तद्गुण से स्वतन्त्र उनके अस्तित्व की कल्पना अनावश्यक ही नहीं, अनुचित भी जान पड़ती है। तद्गुण में कोई वस्तु अपने गुण का त्याग कर उस वस्तु का गुण ग्रहण कर लेती है, जिसके सम्पर्क में वह आती है। गुगवत् में भी तो यही होता है। गुणहीन व्यक्ति अपने हीन गुण का त्याग कर ससर्ग में आने वाले गुणी व्यक्ति का उत्कृष्ट गुण ग्रहण कर लेता है। देव ने तद्गुग का अस्तित्व स्वीकार किया है। अतः, उनके द्वारा गुणवत् की कल्पना नवीनता-प्रदर्शन मात्र के लिए की मयी जान पड़ती है। प्रत्यनीक में भी दूसरे के अवगुण से अन्य के प्रभावित होने का ही भाव है। सङ्कीर्ण का स्वरूप बहुत अस्पष्ट रह गया है। देव ने इसकी परिभाषा में कहा है कि इसमें बहुलक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास वणित रहता है। यदि इस कथन का यह अर्थ माना जाय कि इस अलङ्कार में अनेक लक्ष्यों की प्राप्ति का यत्न वणित होता है जैसा कि सङ्कीर्ण के उदाहरण की परीक्षा से भी देव तथा १. तुलनीय-गुन में दोष रु दोष में, गुन कल्पन सो लेख । -जसवन्त, भाषाभूषण, अलं० प्र० १६७ गुन दोषन के दोष गुन, लेख सु कहौ बखानि । -देव, शब्दरसायन, पृ० १७८ २. गुनवत संग गुनीन के, निगुनी गुननि प्रवीन, प्रत्यनीक उलटो गुनहि, निगुन कर गुनहीन । -देव, शब्दरसायन, पृ० १७८ ३. ....."संकीरण बहुलक्ष । वही, पृ० १८०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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