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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३२७ 'शिवराजभूषण' के अन्य सभी अलङ्कारों के नाम-रूप प्राचीन ही हैं'। कुछ अलङ्कारों के स्वरूप को भूषण ने किञ्चित् अस्पष्ट भी कर दिया है। इस विवेचन से स्पष्ट है कि अलङ्कार के क्षेत्र में भूषण ने कोई महत्त्वपूर्ण उद्भावना नहीं की है। आधाराधेय के पारस्परिक विपर्यय में जो विपरीत की सत्ता कल्पित है, उसका बीज प्रतीप तथा आधाराधेय-भाव पर आधृत अलङ्कारों की धारणा में है। देव __ आचार्य देव ने 'शब्दरसायन' या 'काव्यरसायन' तथा 'भावविलास'; इन दो कृतियों में काव्यालङ्कार के स्वरूप का निरूपण किया है। उक्त ग्रन्थों में 'शब्दरसायन' ही देव की प्रौढ रचना है। अतः, देव की अलङ्कार-धारणा के मूल्याङ्कन के लिए वही परीक्ष्य है । 'भावविलास' में केवल उनचालीस अलङ्कारों का विवेचन किया गया है; पर 'शब्दरसायन' में मुख्य और गौण अलङ्कारों को मिला कर सत्तर अलङ्कार निरूपित हैं। इस ग्रन्थ में चालीस मुख्य तथा तीस गौण अलङ्कार माने गये हैं। इन अर्थालङ्कारों के अतिरिक्त 'शब्दरसायन' में शब्दालङ्कारों का भी विवेचन किया गया है। __'भावविलास' में देव ने जिन उनचालीस अलङ्कारों का विवेचन किया था, उनमें से बत्तीस अलङ्कार 'शब्दरसायन' में भी गृहीत हैं। उन बत्तीस को इस पुस्तक में मुख्य अलङ्कार माना गया है; किन्तु सात को क्यों छोड़ दिया गया, इसका कोई कारण नहीं जान पड़ता। _ 'भावविलास' में विवेचित अलङ्कार हैं:-स्वभावोक्ति, उपमा, उपमेयोपमा, संशय, अनन्वय, रूपक, अतिशयोक्ति, समासोक्ति, वक्रोक्ति, पर्यायोक्ति, सहोक्ति, विशेषोक्ति, व्यतिरेक, विभावना, उत्प्रेक्षा, आक्षेप, उदात्त, दीपक, अपह्नति, श्लेष, अर्थान्तरन्यास, अप्रस्तुतप्रशंसा, व्याजस्तुति, आवृत्तिदीपक, निदर्शना, विरोध, परिवृत्ति, हेतु, रसवत्, ऊर्जस्वी या ऊर्जस्वल, सूक्ष्म, प्रेय, क्रम, समाहित, तुल्ययोगिता, लेश, भाविक, सङ्कीर्ण और आशिष । १. मुख्य कहो चालीस विधि, गौन सुतीस प्रकार।.. . -देव, शब्दरसायन, ९ पृ० १४८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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