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________________ ३१४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण उन्मीलित, विशेषक, गूढोत्तर, चित्र, सूक्ष्म, पिहित, व्याजोक्ति, गूढोक्ति, विवृतोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, छेकोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक, उदात्त, अत्युक्ति, निरुक्ति, प्रतिषेध, विधि और हेतु ।। शब्दालङ्कार :-छेकानुप्रास, लाटानुप्रासं, यमकानुप्रास तथा वृत्त्यनुप्रास । उपरिलिखित एक सौ एक अर्थालङ्कारों एवं चार शब्दालङ्कारों के स्वरूप की विवेचना महाराज जसवन्त सिंह ने 'भाषाभूषण' में की है। उनके चार शब्दालङ्कार वस्तुतः एक ही अनुप्रास के चार भेद हैं, फिर भी परम्परा से उनका पृथक्-पृथक् अस्तित्व स्वीकार किया जाता रहा है । जसवन्त सिंह के शब्दालङ्कारों की संख्या चार मानने पर भी एक सौ एक अर्थालङ्कारों से उन्हें मिला कर कुल एक सौ पाँच अलङ्कार ही होते हैं। किन्तु; महाराज जसवन्त सिंह ने स्वयं एक सौ आठ अलङ्कारों के स्वरूप-निरूपण का दावा किया है । संख्या के सम्बन्ध में 'भाषाभूषण' के लेखक की मान्यता को गलत नहीं माना जा सकता। उससे 'भाषाभूषण' के प्राप्त पाठ में जो संख्या का अन्तर है, उसका एक कारण तो यह हो सकता है कि मूल पुस्तक के कुछ अलङ्कार-लक्षण किसी कारण नष्ट हो गये होंगे । एक दूसरे कारण का भी अनुमान किया जा सकता है। सम्भव है कि जिन-जिन अलङ्कारों के एकाधिक स्वरूप स्वीकृत हैं, उन-उन अलङ्कारों की गणना भाषाभूषणकार ने स्वरूप के आधार पर एक से अधिक कर ली हो। किन्तु, ऐसा अनुमान करने पर समस्या के सुलझने के बजाय दूसरी कठिनाई उपस्थित हो जाती है। ऐसा मानने पर अलङ्कारों की संख्या एक सौ आठ से अधिक हो जाती है। उदाहरणार्थ; व्यतिरेक, विभावना, अतिशयोक्ति आदि के तत्तद् रूपों की अलग-अलग गिनती करने पर अलङ्कारों की संख्या एक सौ आठ से बहुत अधिक हो जायगी। इसलिए, अलङ्कार की संख्या-विषयक इस गड़बड़ी का पहला कारण ही सम्भावित जान पड़ता है। महाराज जसवन्त ने शब्दालङ्कारों की संख्या छह मानी है। उनका कथन है कि यों तो शब्द के अनेक अलङ्कार हो सकते हैं; पर मैंने छह अनुप्रासों का ही विवेचन किया है।' 'भाषाभूषण' में चार अनुप्रास ही विवेचित हैं। स्पष्ट है कि अनुप्रास के दो प्रकारों के लक्षण लुप्त हैं। यदि शब्दालङ्कारों १. शब्दालङ कृति बहुत हैं, अच्छर के संजोग । अनुप्रास षटविधि कहे, जे हैं भाषा जोग ।। -जशवन्त, भाषाभूषण, अलङ्कार प्रकरण, २१०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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