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हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३१३ किया है। जहाँ-कहीं नवीनता लाने का आयास उन्होंने किया है वहाँ या तो प्राचीन धारणा को ही कुछ विकृत और अस्पष्ट कर दिया है या फिर ऐसे अलङ्कारों के स्वरूप की कल्पना कर ली है, जिन्हें अलङ्कार माना ही नहीं जा सकता।
महाराज जसवन्त सिंह 'भाषाभूषण' में महाराज जसवन्त सिंह ने एक सौ आठ अलङ्कारों का लक्षण-निरूपण किया है। उन्होंने मौलिकता का मिथ्याभिमान नहीं कर स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मैंने संस्कृत आचार्यों के अलङ्कार-लक्षणों के आधार 'पर अलङ्कारों को परिभाषित किया है।' 'भाषाभूषण' में एक ही पद में अलङ्कार के लक्षण-उदाहरण देने की 'कुवलयानन्द' आदि की पद्धति अपनायी नगयी है। प्रस्तुत सन्दर्भ में 'भाषाभूषण' में विवेचित अलङ्कारों के स्रोत का परीक्षण हमारा इष्ट है।
'भाषाभूषण' में अनुक्रम से निम्नलिखित अलङ्कारों का स्वरूप-निरूपण किया गया है :___ अर्थालङ्कार :-उपमा, अनन्वय, उपमानोपमेय, प्रतीप, रूपक, परिणाम, उल्लेख, स्मरण, भ्रम, सन्देह, अपह्नति, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, तुल्ययोगिता, दीपक, दीपकावृत्ति, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदर्शना, व्यतिरेक, सहोक्ति, विनोक्ति, समासोक्ति, परिकर, परिकराङ कुर, श्लेष, अप्रस्तुतप्रशंसा, प्रस्तुताङ कुर, पर्यायोक्ति, व्याजस्तुति, व्याजनिन्दा, आक्षेप, विरोधाभास, विभावना, विशेषोक्ति, असम्भव, असङ्गति, विषम, सम, विचित्र, अधिक, अल्प, अन्योन्य, विशेष, व्याघात, कारणमाला, एकावलो. मालादीपक, सार, यथासंख्य, पर्याय, 'परिवृत्ति, परिसंख्या, विकल्प, समुच्चय, कारकदीपक, समाधि, प्रत्यनीक, काव्यार्थापत्ति, काव्यलिङ्ग, अर्थान्तरन्यास, विकस्वर, प्रौढोक्ति, सम्भावना, मिथ्याध्यवसिति, ललित, प्रहर्षण, विषाद, उल्लास, अवज्ञा, अनुज्ञा, लेख, मुद्रा, रत्नावली, तद्गुण, पूर्वरूप, अतद्गुण, अनुगुण, मीलित, सामान्य,
१. अलङ कार शब्दार्थ के, कहे एक सौ आठ । किए प्रगट भाषा विर्षे, देखि संस्कृत पाठ ।।
-जसवन्त सिंह, भाषाभूषण, अलं० प्रकरण, २०६