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३१० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण धारणा को एक अलङ्कार मान लिया है। उनकी अन्योक्ति प्राचीनों की अप्रस्तुतप्रशंसा से अभिन्न है। प्राचीन आचार्यों की असङ्गति को केशव ने व्यधिकरणोक्ति की संज्ञा दी है। अमित
केशव ने अमित के लक्षण में कहा है कि जहाँ साधन ही साधक की शुभ सिद्धि का फल भोगता हो, वहाँ अमित अलङ्कार होता है।' साधक सिद्धि के लिए किसी साधन का प्रयोग करता है और उस साधन से प्राप्त होने वाली सिद्धि का भोग साधक ही करता है; पर जहाँ साधन के द्वारा ही सिद्धि के भोग किये जाने का वर्णन हो या सिद्धि की प्राप्ति का श्रेय साधन को ही मिले वहाँ अमित नामक अलङ्कार होता है। इसके दो उदाहरण दिये गये है। एक में नायिका की दूती का नायक के साथ सम्भोग का तथा दूसरे में मधुकर शाह की जगह उसके सेनापति दुलहराम का विजयश्री प्राप्त करने का वर्णन है ।२ केशव की मान्यता है कि पहले में नायिका साधक, दूती साधन तथा सम्भोग-सुख साध्य है; पर वह साध्य साधन को ही मिल जाता है। दूसरे में साधक है मधुकर शाह, पर विजयश्री प्राप्त करने के साधनभूत दुलह को विजयश्री प्राप्त हो जाती है। अमित केशव की नूतन उद्भावना है।
केशव का युक्त अलङ्कार प्राचीन आचार्यों के स्वभावोक्ति अलङ्कार के समान ही है, जिसमें किसी के बुद्धि-बल के अनुरूप स्वरूप का कथन होता है । प्राचीन आचार्यों के स्वभावोक्ति अलङ्कार को स्वीकार कर भी युक्त का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार किया गया है। इसमें स्वभावोक्ति के साथ 'सम' की योग्यतया योग की धारणा भी मिला दी गयी है।
सुसिद्ध, प्रसिद्ध तथा विपरीत अलङ्कारों के नाम नवीन हैं। सुसिद्ध का स्वरूप असङ्गति के आधार पर कल्पित है; पर इसमें असङ्गति-जैसा चमत्कार नहीं। किसी अन्य के द्वारा जुटाये हुए साधन का फल कोई अन्य भोगे तो उसे केशव सुसिद्ध अलङ्कार कहेंगे। इसमें कोई चमत्कार नहीं। पिता के साधन
१. द्रष्टव्य-केशव, कविप्रिया, १२, २६ २. वही, १२, २७-२८ ३. जैसो जाको रूप बल, कहिये ताही रूप । ताको कविकुल युक्त कहि, बरणन विविध सरूप ॥
-वही, १२, ३१ ४. साधि-साधि और मर, और भोगें सिद्धि ।
तासों कहत सुसिद्धि सब.........॥ वही, १३, ४