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________________ ३०६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण पर्यायोक्ति, युक्त, समाहित, सुसिद्ध, प्रसिद्ध, विपरीत, रूपक, दीपक, प्रहेलिका, परिवृत्त, उपमा, यमक और चित्र । उक्त बयालिस अलङ्कारों का सोदाहरण लक्षण-निरूपण 'कविप्रिया' में किया गया है। कन्हैयालाल पोद्दार का कथन है कि (कविप्रिया के) नवें से सोलहवें प्रभाव तक शब्द और अर्थ के सैंतीस अलङ्कारों का निरूपण किया गया है। उन्होंने 'कविप्रिया' के टीकाकार लाला भगवान दीन के इस कथन को ही अपरीक्षित रूप से स्वीकार कर लिया है-'केशव ने मुख्य सैंतीस नाम कहे हैं; पर इनके अवान्तर भेद मिल कर इनसे अधिक अलङ्कारों का वर्णन इस पुस्तक में है।'' लाला भगवान दीन ने वक्रोक्ति, अन्योक्ति आदि अलङ्कारों को उक्ति अलङ्कार का भेद मान लिया है। वस्तुतः, वे उक्तिमूलक अलङ्कार हैं, उक्ति अलङ्कार के भेद नहीं। उनसे स्वतन्त्र उक्ति नामक कोई अलङ्कार नहीं। हम देख चुके हैं कि केशव के पूर्व संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र में शताधिक अलङ्कारों का विवेचन हो चुका था; किन्तु केशव ने उनमें से सबका अलङ्कारत्व स्वीकार नहीं किया। उन्होंने जितने अलङ्कारों का स्वरूप-निरूपण किया है उन सब के नाम संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र से ही नहीं लिये गये हैं ; कुछ अलङ्कारों के नाम नवीन हैं। पूर्व-प्रतिपादित अनेक अलङ्कारों की अस्वीकृति का कोई कारण 'कवि-प्रिया' में निर्दिष्ट नहीं है। कुछ अलङ्कारों के नवीन व्यपदेश की कल्पना के पीछे भी मौलिकता-प्रदर्शन की भावना ही जान पड़ती है । प्रस्तुत सन्दर्भ में हम केशव के अलङ्कारों का संस्कृत-आचार्यों के अलङ्कार से तुलनात्मक अध्ययन कर केशव के द्वारा उद्भावित नवीन अलङ्कारों के उद्गम-स्रोत पर विचार करेंगे। 'कविप्रिया' में विवेचित अलङ्कारों में जाति या स्वभावोक्ति, विभावना, हेतु, उत्प्रेक्षा, आक्षेप, आशीः, श्लेष, सूक्ष्म, लेश, निदर्शना, ऊर्जस्वी, रसवत्, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, अपह नुति, विशेषोक्ति, सहोक्ति, व्याजस्तुति, पर्यायोक्ति, समाहित, रूपक, दीपक, प्रहेलिका, उपमा, यमक, और चित्र अलङ्कारों के नाम-रूप संस्कृत-आचार्यों के द्वारा विवेचित अलङ्कारों से अभिन्न हैं। केशव ने विरोध एवं विरोधाभास के पृथक-पृथक स्वरूप का वर्णन किया है। संस्कृत अलङ्कार-शास्त्र में भी विरोध तथा विरोधाभास संज्ञाओं का १. लाला भगवान दीन, प्रिया-प्रकाश, पृ० १४८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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