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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३०५ होकर रसिकों का मनोरञ्जन करने लगी। अलङ्कार-विवेचन तत्कालीन साहित्य-शास्त्र का प्रधान अङ्ग बना । उक्ति-चमत्कार कविता का प्रधान अङ्ग स्वीकृत हुआ। हिन्दी के आचार्यों पर ही नहीं, उस काल के रस-सिद्ध संस्कृत के कवि तथा ध्वनि-सम्प्रदाय के समर्थ समर्थक आचार्य पण्डितराज जगन्नाथ पर भी चमत्कारवाद का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहा। उन्होंने भी काव्य की परिभाषा में उक्ति-चमत्कार पर बल दिया है। रीतिकालीन सामाजिक स्थिति का स्वाभाविक प्रतिफलन कृत्रिम एवं अलङ कृत उक्ति से चमत्कार उत्पन्न करने के आयास में हुआ और अलङ्कारविवेचन को आचार्यों ने प्राथमिकता दी। रीति-काल के अनेक आचार्यों ने केवल काव्यालङ्कारों के ही स्वरूप का विवेचन किया है। काव्य के रस आदि अन्य अङ्गों का विवेचन करने वाले आचार्यों ने भी अलङ्कारों का लक्षणनिरूपण किया है। इस प्रकार काव्यालङ्कार का स्वरूप-निरूपण करने वाले आचार्यों की रीति-काल में लम्बी परम्परा रही है। प्रस्तुत अध्याय में हम हिन्दीरीति-आचार्यों की अलङ्कार-विषयक उद्भावना का मूल्याङ्कन करेंगे। आचार्य केशव दास केशव दास हिन्दी-रीति-शास्त्र के प्रथम आचार्य हैं। उन्होंने 'कविप्रिया' में काव्यालङ्कारों का स्वरूप-विवेचन किया है। कवि के रूप में केशव बौद्धिक चमत्कार-प्रदर्शन के लिए विख्यात हैं। उन्होंने काव्य में अलङ्कार का सद्भाव आवश्यक माना है। अतः, पण्डित रामचन्द्र शुक्ल की यह मान्यता उचित ही है कि- केशव को ही अलङ्कार आवश्यक मानने के कारण अलङ्कारवादी कह सकते हैं । २ 'कवि-प्रिया' में विवेचित अलङ्कार निम्नलिखित हैं :___जाति या स्वभाव, विभावना, हेतु, विरोध, विरोधाभास, विशेष, उत्प्रेक्षा, आक्षेप, क्रम, गणना, आशिष, प्रेम, श्लेष, सूक्ष्म, लेश, निदर्शना, ऊर्जस्वी, रसवत्, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, अपह्नति, वक्रोक्ति, अन्योक्ति, व्यधिकरणोक्ति, विशेषोक्ति, सहोक्ति, व्याजस्तुति, व्याजनिन्दा, अमित, . १. जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त । भूषन बिनु न विराजहीं, कविता बनिता मित्त ॥ -केशव, कविप्रिया, प्रभाव, ५,१ २. रामचन्द्र शुक्ल, हि० सा० का इतिहास, पृ० २३६ २०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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