SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण क्रमशः विशेष, तद्गुण, मीलित एवं अधिक आदि के वैपरीत्य के आधार पर की गयी है। (९) रस-भाव आदि की धारणा पर अवलम्बित :-अलङ्कारप्रस्थान के कुछ आचार्यों ने रस-भाव आदि को भी अलङ्कार के क्षेत्र में समाविष्ट कर दिया है। रसवत्, प्रेय, ऊर्जस्वी आदि का सम्बन्ध रस, भाव आदि से है। रस, भाव आदि की प्राचीन मान्यता में ही अलङ्कारत्व की कल्पना पीछे चल कर कर ली गयी है । (१०) औचित्य-धारणा से आविर्भूत :-भोज का भाषौचित्य अलङ्कार औचित्य का ही एक प्रकार है। औचित्य को अलङ्कार मानना 'उचित नहीं। (११) शब्दशक्ति की धारणा पर आधृत :-मुद्रा, विवृतोक्ति आदि अलङ्कार के मूल में शब्दशक्ति की धारणा निहित है । (१२) मौलिक अलङ्कारः-संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र में भरत के परवर्ती आचार्यों ने समय-समय पर जिन मौलिक अलङ्कारों की उद्भावना की है, वे निम्नलिखित हैं। उनको दो वर्गों में प्रस्तुत करना उचित होगा—(क) अंशतः मौलिक वर्ग में तथा (ख) पूर्ण मौलिक वर्ग में। अंशतः मौलिक अलङ्कार वे हैं, जिनके स्वरूप की कल्पना की कुछ सम्भावना तो भरत आदि प्राचीन आचार्यों के लक्षण, गुण, अलङ्कार आदि में ही थी, पर उनके स्वरूप की कल्पना कुछ स्वतन्त्र रूप से भी हुई है । पूर्णतः मौलिक वर्ग में वे अलङ्कार रखे गये हैं, जिनके स्वरूप का सङ्केत 'नाट्यशास्त्र' में कहीं नहीं मिलता। (क) श्लिष्ट, सहोक्ति, परिवृत्ति, भाविक, वास्तव-वर्ग के पर्याय; परिवृत्ति, सूक्ष्म, अतिशय, तद्गुण; औपम्य-वर्गगत सहोक्ति और आक्षेप; परिणाम और लोकोक्ति । (ख) वक्रोक्ति, विभावना, विशेषोक्ति, पर्यायोक्ति, समाहित, पुनरुक्तवदाभास, व्याजोक्ति, यथासंख्य, वास्तव-वर्गगत समुच्चय, विषम, कारणमाला, अन्योन्य, सार, मीलित, एकावली तथा पर्याय का एक प्रकार; औपम्य-वर्गगत प्रत्यनीक; अतिशय-वर्गगत विशेष, अधिक, विषम, असङ्गति, पिहित तथा तद्गुण का एक प्रकार; अर्थानुप्रास, उल्लास, पूर्वरूप, प्रहर्षण, अवज्ञा, रत्नावली, विचित्र आदि पूर्ण मौलिक अलङ्कार हैं। इनमें से विभावना, विशेषोक्ति पर्यायोक्ति, समाहित और यथासंख्य की उद्भावना का श्र य भामह को; समुच्चय से तद्गुण तक के अलङ्कारों की उद्भावना का श्रेय रुद्रट को;
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy